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कौन हो तुम ?

अलसाई सी सुबह में कोमल छुवन के अहसास से हो

अनजाने चेहरों में एक अटूट  विश्वास से हो...

 

गडगडाते  बादलों में सुरक्षा के अहसास के जैसे,

काँटों भरी दुनिया में स्वर्ग के पारिजात के जैसे

 

बद्दुआओं की भीड़ में ईश्वर के आशीर्वाद से तुम

लम्बे समय के मौन में आँखों के संवाद से तुम...

 

लड़कपन की उम्र में कनखियों  के प्यार तुम,

हर मोड़ की हार के बाद आशाओं के विस्तार तुम.

 

सूनी आँखों से बोलने वाले मेरे मन की बात हो तुम

मेरे निष्पाप प्यार हो या प्रेम निस्वार्थ हो  तुम

 

झुलसती गर्मी में बरसाती फुहार से तुम

पथराए नैनों में उम्मीदों की लहर से तुम

 

मेरे अंतर्मन के अहसास हो या जन्मों की अधूरी प्यास हो?

मेरे दिल कि सूनी गुफा में गंगाजल का झरना हो तुम

या बेरागी के मन में मचलता वीतराग हो तुम ?

 

अनंत  आकाश  में उड़ते पंछी हो तुम

या या मेरे जन्मों का प्रेम अनुराग हो तुम ?

कही दूर से आती शंख ध्वनि हो तुम ?

या मेरे मन के कोने में बैठी पाषाण प्रतिमा का मानवीय संवाद हो तुम?

 

हर बार खोजती हूँ मगर हाथ नहीं आते ,

दिन-रात का साथ है पर साथ नहीं आते

कोई ख्वाब हो या ख्वाबों  की हकीक़त हो तुम ?

जो भी हो मेरे लिए सबसे खूबसूरत हो तुम?

मेरे लिए पल-पल की जरूरत हो तुम..........

 

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 15, 2011 at 5:50pm

रोमिल भावनाओं का भावुक समुच्चय.. वाह !

शुभेच्छा.. .

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