For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आज इन्दुमति की शादी है। दलन पाठक पुरोहित हैं। इन्दु के घरवालों के सम्मुख उसे पातिव्रत्य-धर्म की शिक्षा दे रहे है, ‘औरत का सब कुछ पति के लिए होता है। अपना संचित पुण्य, सुरक्षित शील वह मिलन की पहली रात में अपने पति को समर्पित कर धन्य होती है ........।बाबा बोलते जाते हैं। घरवाले मुंड हिला-हिलाकर उनकी बातों का समर्थन करते हैं। बीच-बीच में इन्दु से भी पाठक जी पूछ लेते हैं, ‘समझ रही हो न कन्या?’ बेटी नहीं कहते हैं। उन्हें कुछ-कुछ याद है। इन्दु को तो सब कुछ याद है। उनके पूछने पर वह भीहाँमें सिर हिला देती है। वह समझ रही है कि यह अभ्यास कराया जा रहा है। मरवा में शादी के समय उसे यह सब संकारना होगा। बाबाजी आगे बोलते जा रहे है।

इन्दुमति को याद है,नौवीं कक्षा में वह अङ्ग्रेज़ी में फेल हो रही थी। रिजल्ट होने के पहले पाठक सर छुट्टी के समय धीरे-से उसके कान में फुसफुसए थे, ‘अङ्ग्रेज़ी में फेल हो। कल फी-वसूली का दिन है। लड़के-लड़कियाँ ग्यारह बजे के पहले नहीं आते।मैं आ जाऊँगा। चाहो,तो आ जाना। सब ठीक करा दूँगा।

वह दूसरे दिन नौ बजे सुबह स्कूल पहुँच गई।माहौल एकदम शांत था।कहीं कोई नहीं दिखाई पड़ा।अपने फी-वसूली वाले छोटे-से कमरे में पाठक बाबा बैठे हुए रजिस्टर में कुछ लिख रहे थे।

उसने जाकर बाबा के पाँव छूए। उन्होने उसके सिर पर हाथ फेरा। वह कुछ कहने को हुई, तो इशारे से चुप रहने को कहा। वह चुपचाप उनकी कुर्सी की बगल में खड़ी हो गई। बाबा उठे। दरवाजा बंद किया। सिटकनी चढ़ाई। इन्दु थोड़ी डरी-सी लगी। उन्होने उसके गालों को सहलाते हुए नहीं डरने की हिम्मत दी। धीरे-से बोले, ‘गुप्त काम है न। किसी को पता चलेगा, तो शिकायत होगी। सब फेल लड़कियाँ पास होना चाहेंगी। मुँह बंद रखोगी?’

जी सर।

ठीक है।वह अलमारी खोलो।उसीमें उत्तर-पुस्तिकाएँ हैं।अपनी वाली निकालो।

वह ढूँढने लगी। उत्तर-पुस्तिका नहीं मिली। अचानक बाबा धीरे-से फुसफुसए, ‘अरे, इस तरफ नहीं हैं। ऊपर के रैक में हैं। निकाल लो।

वह रैक ऊपर थी। वह नहीं पहुँच सकी। बाबा ने उसकी काँख में अपने दोनों हाथ लगाए। उसे ऊपर उठाया। फिर बोले, ‘अब ढूँढो।मैं तुम्हें संभाले हूँ।वह कसमसाई,पर क्या करे?उसका सबकुछ बाबा की मुट्ठियों में मजबूती से कैद  था।           

उत्तर-पुस्तिका मिली। वह नीचे आई। बाबा ने उसे जमाने की ऊंच-नीच समझाई। बोले, ‘फेल होगी तो कितनी शिकायत होगी?’

जी। मुझे पास कर दीजिये। मैं फेल होना नहीं चाहती। कैसे भी, कीजिये।

तो आओ।

आई।

बाबा उसे चटाई पर ले गए। बोले, ‘बैठ जाओ। थक गई हो। थोड़ा आराम हो जाए। मैं भी तुम्हें उठाए-उठाए थका हूँ। दबा मेरे पैर।

बाबा लेट गए। वह उनके पैर दबाने लगी। वे ‘और ऊपर, थोड़ा और ऊपरकरते रहे। उसके हाथ ऊपर बढ़ते रहे। फिर बाबा ने उसे प्रसाद खाने को दिया था। प्रसाद खाने पर उसका माथा घूमा था। फिर क्या हुआ, उसे  कुछ याद नहीं।नींद में ही उसे लगा जैसे वह नाव में लेटी हो और नाव हिचकोले खा रही हो। आँखें खुलीं,तो वह चटाई पर ही थी। रात होनेवाली थी। उस दिन स्कूल की छुट्टी थी।वह नौवीं कक्षा पास होकर घर आ गई।

वह आगे याद करने लगी, ‘अब वह फेल नहीं होती थी। उसे पास होना आ गया था। होते-होते ग्यारहवीं में आ गई। फ़ाइनल टेस्ट- परीक्षा हुई। अबसेंट अपहोना था, बोर्ड परीक्षा के लिए। एक बार फिर वह लटक गई। परिणामविचाराधीनमें रहा। प्रधानाध्यापक की स्वीकृति सेविचाराधीनविद्यार्थीसेंट अपहो सकता था। मामला फिर से पाठक बाबा की अदालत में चला गया। वे अभी प्रभारी प्रधानाध्यापक थे।इन्दुमति ने बाबा से गुहार लगाई।

बाबा फिर फुसफुसए थे। वह समझ गई।रविवार के दिन मुकर्रर हुए। कम-से-कम तीन रविवार पर बात फ़ाइनल हुई थी। कहते हैं, ‘तीन उड़ानों में तीतिर पकड़ में आ जाता है।पाठक बाबा तीनों रविवार स्कूल पर ही रहे।वे और इन्दुमति अपने-अपनेतीतिरपकड़ते रहे। सबेरे इन्दु स्कूल आ जाती। घर में कह रखा था कि अङ्ग्रेज़ी थोड़ी कमजोर है। ट्यूशन ले रही है। जब रविवार शाम को बाबा के कमरे से निकलती, नत्थू चपरासी पूछता, ‘हो गइनी सेंट अप?’ वह लजा जाती।

वह मैट्रिक में फ़ेल हो गई। बाबा बोले थे, ‘चल पटना। स्क्रूटिनी में नंबर बढ़ जायेंगे।पर, न वह चाहती थी, न घरवाले राजी हुए। और आज उसकी शादी हो रही है।

वह सोच रही है, ‘नौवी में फ़ेल ही रहती, तो ठीक होता। आगे जाकेसेंट अपतो नहीं होना पड़ता।

"मौलिक एवं अप्रकाशित" 

Views: 243

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Manan Kumar singh on October 20, 2022 at 9:13am

आदरणीय लक्ष्मण भाई जी, आपका आभार। नमन। 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 19, 2022 at 9:33pm

आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। सुन्दर लघुकथा हुई है । हार्दिक बधाई स्वीकारें।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service