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एक जनम मुझे और मिले

एक जनम मुझे और मिले, मां, मैं देश की सेवा कर पाऊं 

दूध का ऋण उतारा अब तक, मिट्टी का ऋण भी चुका पाऊं 

 

मुझको तुम बांधे ना रखना, अपनी ममता के बंधन में 

मैं उसका भी हिस्सा हूँ मां, तुमने है जन्म लिया जिसमे  

 

शादी बच्चे घर संसार, ये सब मेरे पग को बांधे है 

लेकिन मुझसे मिट्टी मेरी, मां, बस एक बलिदान ही मांगे है 

 

सब हीं आंचल मे छुपे रहे तो, देश को कौन संंभालेगा 

सीमा पर शत्रु सेना से, फिर कौन कहो लोहा लेगा 

 

तुमने दुध पिलाया मुझको, तुमने हीं चलना सिखलाया है 

देश प्रेम है सबसे पहले, मां, ये तुमने ही पाठ पढाया है 

 

जैसी मुझको तुम प्रिय रही, मां, मातृ भूमी भी प्यारी है 

बहुत दिया है इसने हमको अब लौटाने की बारी है 

 

अगले जनम जो मिली मुझे तो, मन अपना तुम पत्थर करना

इस बार सभी है लुटाया तुझपर,  एक बार है देश के खातिर मरना 

 

विवाह भले हो तेरा मुझसे, पर वर्दी मेरी दुल्हन होगी 

पूरा जीवन उसे समर्पित कोई जिद तेरे ना पुरी होगी 

 

जिसने जीवन दिया हम सबको, जिसका हमने अन्न खाया है 

फिर ऐसे संतान बने हम, जिसने अपना कर्तव्य निभाया है 

 

धन दौलत इज्जत शोहरत सब, मिट्टी ही हमें दिलाती है 

सब देकर भी हमपर यह अपना, उपकार नहीं जताती है 

 

इसकी रक्षा करने की खातिर सौ जीवन भी कम पड जाये 

जितनी बार हमें जनम मिले, बस इसपर न्योंछावर हो जाये 

 

इस जनम फर्ज़ निभाये हमने, पुत्र, पति, पिता बनकर 

अगले जन्म कर्ज़ चुकाना है बस भारत मां का बेटा बनकर

"मौलिक व अप्रकाशित" 

अमन सिन्हा 

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