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    सत्य है, लोग
    व्यवहारिक हो गए हैं
    कल के रिश्ते
    आज खो गए हैं

    किसी के बाप
    किसी की माँ का पता ही नहीं
    झेलें अवसाद
    बचपन जिया ही नहीं

    आख़िर हवा किधर बह रही है?
    इन्सान भ्रमित है
    कभी इधर, कभी उधर
    बह रही है

    अपनी ही धुन में, निर्बन्ध
    जवानी जिए जाते हैं
    आया बुढ़ापा
    सिर धुन पछताते हैं

    मौलिक एवं अप्रकाशित

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