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यथार्थ के दोहे. . . . . .

यथार्थ के दोहे .....

पाप पंक पर बैठ कर ,करें पुण्य की बात ।
ढोंगी लोगों से मिलेेें, सदा यहाँ आघात ।।

आदि -अन्त के भेद को, जान सका है कौन ।
एक तीर पर शोर है, एक तीर पर मौन ।।

आदि- अन्त का ग्रन्थ है, कर्मों का अभिलेख ।
जन्म- जन्म की रेख को,देख सके तो देख ।।

कितना टाला आ गई, देखो आखिर शाम ।
दूर क्षितिज पर दिख रहा, अब अन्तिम विश्राम ।।

तृप्ति यहाँ आभास है, तृष्णा भी आभास  ।
मौसम का मधुमास भी , आभासी मधुमास ।।

सुशील सरना /26-3-22

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by Samar kabeer on March 29, 2022 at 4:01pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब , अच्छे दोहे लिखे आपने, बधाई स्वीकार करें I 

Comment by Sushil Sarna on March 28, 2022 at 7:57pm
आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर प्रणाम - सर सृजन पर आपकी गहन समीक्षात्मक प्रतिक्रिया का दिल से आभार । ऐसी बात नहीं यह त्रुटि कट पेस्ट के दौरान हुई है । इसे मैं अभी संशोधित कर पुन: प्रेषित करता हूँ ।प्रयास करूँगा कि भविष्य में आपको निराशा न हो । इस हेतु क्षमा एवं हार्दिक आभार । सादर नमन
Comment by Chetan Prakash on March 28, 2022 at 4:10pm

आ. सुशील सरना साहब, नमस्कार, आप अच्छे दोहे लिखते हैं लेकिन क्षमा करें, ऐसा लगता है ताबड़तोड़ शीघ्र ता में दोहा सृजन हुआ है, और जो भाव की गहराई आप के सृजन की चारित्रिक विशेषता सामान्यतः होती है  इस बार सिरे से मुझे गायब दिखाई जान पड़ी ! पहला दोहे का चतुर्थ चरण इसका प्रमाण है, चरण ही अधूरा है  " यह आघात ' पर ही आश्चर्यजनक रूप से समाप्त हो रहा है, सादर

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