For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक रेलगाड़ी और हम- एक सपना मेरा - जाने क्यों - डॉ नूतन ०4-०3-२०11

  मैंने देखा था इक सपना  

एक रेलगाड़ी और हम  

पिताजी टिकट ले कर आते हुवे 

और लोग स्टेशन का पता पूछते हुवे   

इतने  में रेल चल पड़ी थी  

खड़े रह गए थे वो(पिता जी ) अकेले स्टेशन में  

बेहद घबराये छटपटाये थे   

और याद नहीं घर के लोग किधर बिखर गए थे  

रेलगाडी दौड़ रही थी सिटी बजाती 

और उस डब्बे में थे तुम और मैं  

और कुछ भीड़ सी, औरतों की- मर्दों की,  

भजन गाती|  

कुछ अनचाहे चेहरे, क्रूर से, मेरे पास से गुजरे थे  

और तुम ने समेट लिया था मुझे,  

छुपा लिया था मुझको  खुद के आगोश में 

स्नेह भरे उस आलिंगन में फेर लिया था मेरे सर पे हाथ

कितना  भा रहा था मुझको तेरा मेरा साथ

भीग रहा था मन और तन, झूम स्नेह की बरखा आई

इतने  में एक आवाज तुम्हारी पगी प्रेम में  आई  

जो बोला  तुमने भी न  था, न मैंने कानों से सुनी 

वो आवाज मेरी आँखों ने मन-मस्तिष्क से पढ़ी   

तुमने कहा मजबूत बनों खुद, ये साथ न रहे कल तो?

और तुम्हारे चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंच आयीं थी |

जाने क्यों वक़्त रेल की गति से तेज भागता जाने कहाँ रिस गया

जाने क्यों मैं नीचे की बर्थ पे बैठी रही

और तुम ऊपर की बर्थ में कुछ परेशान सोच में |

रेल धीरे.. धीरे... धीरे.... और रुकने लगी

साथ भजन की आवाजे तेज तेज तेजतर गूंजने लगी

जाने क्यों में रेल से नीचे उतर आयी कानों में लिए भजन की आवाज

रेल का धुवां और सिटी की आवाज जब दूर से कानों पे आई

तो जाना मैं अकेले स्टेशन में थी

और वह रेल तुम्हें ले कर द्रुत गति से चल दी थी आगे कहाँ, जाने किस जहां

तुम्हारे वियोग में मैं हाथ मलती खड़ी बहुत पछताई

और टूट गया था वो सपना, था वो कुछ पल का साथ

मैं भीगी थी पसीने से और बीत रही थी रात

आँसू के सैलाब ने मुझको घेरा था

मैंने जाना सब कुछ देखा जैसा, वैसा ही तो था

क्यों पिताजी की आँखों में सदा रहती थी नमी

हमारी खुशियों की खातिर सदा मुस्कुरा रहे थे वो

जब कि उनको भी बेहद कचोट रही थी कमी...

तब चीख के मैंने उन रात के सन्नाटों को पुकारा था...

उस से पूछा था

तुम कहीं भी फ़ैल जाते हो एक सुनसान कमरे से एक भीड़ में

अँधेरे से उजाले में, धरती-पाताल से आकाश और दूर शून्य में

और वो तारा टिमटिमा रहा है जहाँ, वहाँ भी तो तुम रहते हो

फिर तुमने देखा तो होगा उनको .. बोलो बोलो मेरी माँ है कहाँ ..

सन्नाटा भी था मौन और फिर हवा से कुछ पत्तों के गिरने की आवाज थी..

जैसे कह रहें हों  कि जो आता है जग में वो एक दिन मिट्टी में मिल जाता है..

तुम मिट्टी में मिल गयी ये स्वीकार नहीं मुझको

फिर वो रेल कहाँ ले गयी तुमको

किस परालोकिक संसार में

पुकारती हूँ तुमको फिर भी इस दैहिक संसार में ...

बोलो मेरी प्यारी माँ तुम कहाँ, तुम कहाँ  

इंतजारी है मुझको अब उस रेल की

तुमसे दो घडी का नहीं, जन्म जन्म के मेल की ..

Views: 564

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Nutan on March 6, 2011 at 5:54pm
धन्यवाद विवेक जी....
Comment by विवेक मिश्र on March 5, 2011 at 11:30pm
एक संवेदनशील रचना की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई.
Comment by Dr Nutan on March 5, 2011 at 8:08pm
dhnyvaad rashmi ji...
Comment by rashmi prabha on March 5, 2011 at 4:01pm
mann ko chhu gai rachna

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गीत रचा है। हार्दिक बधाई।"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। सुंदर गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।भाई अशोक जी की बात से सहमत हूँ। सादर "
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"दोहो *** मित्र ढूँढता कौन  है, मौसम  के अनुरूप हर मौसम में चाहिए, इस जीवन को धूप।। *…"
11 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, सुंदर दोहे हैं किन्तु प्रदत्त विषय अनुकूल नहीं है. सादर "
19 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, सुन्दर गीत रचा है आपने. प्रदत्त विषय पर. हार्दिक बधाई स्वीकारें.…"
19 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, मौसम के सुखद बदलाव के असर को भिन्न-भिन्न कोण…"
19 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . धर्म
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
22 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"दोहा सप्तक. . . . . मित्र जग में सच्चे मित्र की, नहीं रही पहचान ।कदम -कदम विश्वास का ,होता है…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर,…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"गीत••••• आया मौसम दोस्ती का ! वसंत ने आह्वान किया तो प्रकृति ने श्रृंगार…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आया मौसम दोस्ती का होती है ज्यों दिवाली पर  श्री राम जी के आने की खुशी में  घरों की…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service