For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बहर- 2122/1212 /22
(मन में जोभी मलाल रखते हैं)
जिंदगी जो मलाल रखते है
वो नही जो खयाल रखते है

वास्ता हि नही रहा उनका
बस खयाली पुआल रखते हैं

मौत से वो रहा डरा ही है
जो भि डर मन में पाल रखते हैं

हार जो भी गया हंसी पल है
बाद चाले सभाल रखते है

इश्क में ठोकरें लगी जिनको
प्यार वो बेमिसाल रखते है

धर्म समझा कभी नही वो है
मजहबी जो दीवाल रखते हैं

बात प्यारी हसीन होठों पर
प्यार में वो मिसाल रखते हैं
----------------------------------------------
मौलिक /अप्रकाशित
आमोद बिंदौरी

Views: 768

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by amod shrivastav (bindouri) on September 23, 2015 at 6:21pm
और इसी में
मजहबी जो दीवाल रखते है
को
मजहबी जो बवाल रखते है
मजहबी जो मशाल रखते है
Comment by amod shrivastav (bindouri) on September 23, 2015 at 6:15pm
आ मंच के सभी को नमन
सर वो ख्याली पुआल को
को हटा कर चार अशआर लिखे है
समिक्छा की जाये जो वाजिब हो
उसे मैं उपयोग करू
आप के समक्ष है

बस ये ख्याली ही चाल रखते है-1
यह ही ख्याली भुचाल रखते है-2
मस्तिको का ये जाल रखते है-3
सोंच का ये बवाल रखते है-4
Comment by amod shrivastav (bindouri) on September 18, 2015 at 10:20am
आ मनोज सर
मुहावरा
भी हम जैसे किसी व्यक्ति की उपज है
तो ख्याली पुलाव
और ख्याली पुआल
में क्या अंतर है
दोनों के अर्थ एक है
बस थोडा अंतर आ गया
तब्दीलियां जायज है ।
सादर नमन
Comment by amod shrivastav (bindouri) on September 17, 2015 at 7:10am
बहर- 2122/1212 /22

जिंदगी से मलाल रखते है
वह नही जो खयाल रखते है

वास्ते ही नही रहे उनके
बस ये ख्याली पुआल रखते हैं

मौत से वह रहा डरा ही है
जो भी डर मन में पाल रखते हैं

हार जो भी गया हंसी पल है
हर कदम वो सभाल रखते है

इश्क में ठोकरें लगी जिनको
प्यार वो बेमिसाल रखते है

धर्म समझा कभी नही वो है
मजहबी जो दीवाल रखते हैं

लफ्ज प्यारे हसीन होठों पर
प्यार में वो मिसाल रखते हैं
----------------------------------------------
मौलिक /अप्रकाशित
आमोद बिंदौरी

ये बदलाव किया है
गुणीजन के समक्ष हाजिर है
Comment by मनोज अहसास on September 16, 2015 at 11:58pm
आदरणीय आमोद जी
पुआल तो सही शब्द है चावल के पेड़ वाला
पत ख्याली पुआल नहीं
ख्याली के साथ पुलाव ही चलेगा क्योंकि
ये प्रचलित मुहावरा है
दीवाल आप ले भी सकते है नहीं भी
क्योंकि ये क्षेत्रीय शब्द है
या कहें की ये बिगड़ा हुआ शब्द है
वैसे ये हो सकता है अंग्रेजी से आया हो
दी वाल
अगर पूरी ग़ज़ल ऎसे ही शब्दों में हो
अर्थात क्षेत्रीय शब्दों में हो तो चल जायेगा
बाकि वरिष्ठ ग़ज़लकार मंच के आपको अधिक बता सकेंगे
हमें भी मार्गदर्शन मिलेगा
सादर
Comment by amod shrivastav (bindouri) on September 16, 2015 at 11:14pm
सर एक सवाल उठ रहा है
क्या गजल में सामयिक बोल चाल के शब्द
मान्य नही है

जैसे हमने दीवाल लिखा
वैसे यह दीवार होता है
पुआल लिखा
लेकिन
पुलाव होता है

पुआल हमारे यहाँ
धान
चावल के पेड़ को कहते है
जिसे पैरा भी कहा जाता है
ख्याली पुआल
हमरा ही श्रजन था
तो क्या इस तरह के शब्द
गजल में प्रयोग होते

ऐसा हमने काफ़िया मेल करने के लिए लिखा था

आप सभी के जवाब का इंतजार रहेगा
सादर नमन
Comment by amod shrivastav (bindouri) on September 16, 2015 at 11:00pm
जी सर आप सभी का सादर आभार

सर मै इस बिधा पर बिलकुल नया हु
इस लिए जो जानकारी मिली
वो मेरे जीवन काल तक अमृत है
मै सभी की बात मानता हूँ
आप सभी के मार्गदर्शन के लिए
दिल से आभार
सभी को सादर नमन
Comment by Samar kabeer on September 16, 2015 at 10:56pm
जनाब आमोद जी,आदाब,ग़ज़ल का प्रयास आपका अच्छा है लेकिन अभी कुछ और समय चाहिये इस ग़ज़ल को निखरने में,जनाब रवि शुक्ल जी ने जो भी इशारे दिये हैं वो बिल्कुल दुरुस्त हैं,मैं उनकी बातों से सहमत हूँ ।
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on September 16, 2015 at 5:13pm

बधाई आपको आप सही राह पर हैं..आ० रवि जी और मनोज भाई जी ने सब कह ही दिया है,प्रयासरत रहें!

Comment by मनोज अहसास on September 16, 2015 at 3:01pm
आदरणीय
आपकी ग़ज़ल के बारे में कुछ बातें कहना चाहता हूँ
इस्लाह नहीं है अनुरोध है
इस्लाह गुरुजन शाम तक देगे इसी मुझे उम्मीद है
निवेदन है कि
बहर- 2122/1212 /22
(मन में जोभी मलाल रखते हैं)
जिंदगी जो मलाल रखते है
वो नही जो खयाल रखते है

इस मतले में उला और सानी एक दूसरे से चिपक नहीं रहे है

वास्ता हि नही रहा उनका
बस खयाली पुआल रखते हैं

उनका के स्थान पर उनसे करना ठीक रहेगा
हि को ही कर ले
ख्याली लिखना ठीक रहेगा

मौत से वो रहा डरा ही है
जो भि डर मन में पाल रखते हैं

इसमें ख्याल की कमजोरी है
और भि को भी ही लिखे गिना वो 1 ही जायेगा



हार जो भी गया हंसी पल है
बाद चाले सभाल रखते है

मै इसका अर्थ ही नहीं समझ पाया

बाकि समयानुसार
आदरणीय मंच से निर्देशन का आग्रह है


आपको इस प्रयास की हार्दिक बधाई
ग़ज़ल की बातें में अद्ध्याय 6 आप ज़रूर पढ़े
सादर


------------------------------------------

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
2 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
2 hours ago
Tilak Raj Kapoor updated their profile
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
3 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तिलक राज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए…"
3 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तिलकराज कपूर जी, पोस्ट पर आने और सुझाव के लिए बहुत बहुत आभर।"
3 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service