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" अरे रामू , तुम वापस कब आये , फिर से घर का काम करोगे "?
" क्या करता साहब , बेटा तो अपनी नौकरी पर चला जाता था और रात देर से लौटता था "।
" तो क्या , आराम से घर पर रहते , बहू और बच्चों के साथ समय बिताते "।
" अब क्या कहूँ साहब , आप कम से कम हमें नौकरों जैसा तो समझते हो , पर बहू तो .."!

मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by विनय कुमार on May 14, 2015 at 2:18pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 13, 2015 at 9:52pm
आदरणीय विनय जी सफल लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई सादर
Comment by विनय कुमार on May 13, 2015 at 6:48pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया जी | सुधर कर दिया है और लघुकथा में कुछ संसोधन भी किया है | कृपया अवलोकन करें और अपनी गरिमामयी टिप्पणी दें | 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 13, 2015 at 10:07am

वाह! आदरणीय विनय जी. बहुत मार्मिक लघुकथा साझा की आपने. बधाई स्वीकारें

एक-दो स्थानों पर (?) लगा दीजियेगा.

सादर!

कृपया ध्यान दे...

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