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पंछी उदास हैं/नवगीत/कल्पना रामानी

गाँवों के पंछी उदास हैं

देख-देख सन्नाटा भारी।

 

जब से नई हवा ने अपना,

रुख मोड़ा शहरों की ओर।

बंद किवाड़ों से टकराकर,

वापस जाती है हर भोर।

 

नहीं बुलाते चुग्गा लेकर,

अब उनको मुंडेर, अटारी।

 

हर आँगन के हरे पेड़ पर,

पतझड़ बैठा डेरा डाल।

भीत हो रहा तुलसी चौरा,

देख सन्निकट अपना काल।

 

बदल रहा है अब तो हर घर,

वृद्धाश्रम में बारी-बारी।

 

बतियाते दिन मूक खड़े हैं।

फीकी हुई सुरमई शाम।

घूम-घूम कर ऋतु बसंत की,

हो निराश जाती निज धाम।

 

गाँवों के सुख राख़ कर गई,

शहरों की जगमग चिंगारी। 

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 24, 2014 at 6:37pm

गाँवों के पंछी उदास हैं

देख-देख सन्नाटा भारी।

गाँवों के सुख राख़ कर गई,

शहरों की जगमग चिंगारी।  ---- वाह ! बहुत सुन्दर और लाजवाब गीत रचना हुई है | बहुत बहुत बधाई आद कल्पना रामानी जी 

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 24, 2014 at 3:59pm

जब से नई हवा ने अपना,

रुख मोड़ा शहरों की ओर।

बंद किवाड़ों से टकराकर,

वापस जाती है हर भोर।..........वाह! सुन्दर गीत!

आदरणीया कल्पना रामानी जी सादर, सुन्दर गीत रचा है, बहुत-बहुत बधाई. मुझको इसमें आल्हा का भी आनंद आया है. सादर.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 24, 2014 at 10:21am

आपकी अति सुंदर,सादगी भरी रचना मन को मोह लेती है आदरणीया कल्पना जी, हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 23, 2014 at 8:02pm

गाँवों के सुख राख़ कर गई,

शहरों की जगमग चिंगारी। 

आदरणीया रमानी जी 

सादर 

सच ही तों है 

बधाई सुन्दर प्रस्तुति हेतु 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 23, 2014 at 7:46pm

बहुत सुन्दर लाजबाब नव गीत लिखा आ० कल्पना जी ,

गाँवों के सुख राख़ कर गई,

शहरों की जगमग चिंगारी। ये दो पंक्तियाँ ही पूरी रचना का सार हैं ,बहुत सुन्दर ...हार्दिक बधाई आपको 

Comment by Alka Gupta on April 23, 2014 at 6:50pm

वाह्ह्ह्हह्ह्ह्हह्ह अति सुन्दर भाव प्रस्तुती 

Comment by coontee mukerji on April 23, 2014 at 4:19pm

हमेशा की तरह एक और सुंदर रचना. हार्दिक बधाई.

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