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फसाना खत्म है मेरा मगर कुछ याद बाकी हैं

पलक पर अश्क मत लाओ मेरे जो बाद बाकी है

फ़साना खत्म है मेरा मगर कुछ याद बाकी हैं

मेरा चर्चा करेंगे लोग महफिल में के जश्नों में

समझलेना दिवाने आज भी आबाद बाकी हैं

हजारों मिन्नतें करलीं खुदा के वास्ते उनसे

रहीं कुछ हसरतें बाकी फकत फरियाद बाकी हैं

मेरे कातिल मेरे दुश्मन जरा कुछ हौंसला रखना

बचाने को मेरी खातिर के कुछ इमदाद बाकी हैं

अ़मन के दुश्मनों से भी जरा कहदो जहाँ वालो

अभी तक आज तक इस देश में आजाद बाकी हैं

मौलिक व अप्रकाशित

उमेश कटारा

Views: 605

Comment

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Comment by umesh katara on April 22, 2014 at 7:11am

शुक्रिया सविता जी 

Comment by savitamishra on April 21, 2014 at 11:24pm

बहुत खुबसूरत

Comment by कल्पना रामानी on April 21, 2014 at 11:12pm

शानदार गज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई

Comment by umesh katara on April 21, 2014 at 6:33pm

शुक्रिया चन्द्रशेखर जी

Comment by umesh katara on April 21, 2014 at 6:32pm

शुक्रिया अनुराग सिंह जी 

Comment by Anurag Singh "rishi" on April 21, 2014 at 1:08pm

वाह आदरणीय लाजवाब ग़ज़ल कही है बेहतरीन शेरों के साथ हर शेर जड़ा हुआ सा लगता है

अ़मन के दुश्मनों से भी जरा कहदो जहाँ वालो

अभी तक आज तक इस देश में आजाद बाकी हैं................ इस तेवर के लिए खास बधाईयाँ

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on April 21, 2014 at 11:23am
वाह

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