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कलम (अन्नपूर्णा बाजपेई)

मूक नहीं है वो लिखते जाना ही उसकी जात है ,

तम की स्याही से वो लिखती नित्य नव प्रभात है ।  

 

उजियारा फैलाने को रोज नया सूरज वो लाती है ,

जो मूक हो जीते है उनकी जुबान वो बन जाती है ।  

 

पढ़ लिख कर सम्मान की अलख वो जगाती है ,

झूठे हो चाहे जितने पर सच्चाई की धार लगाती है ।

 

अज्ञानता के घोर तमस को समूल उखाड़ भगाती है,

होती जिसके हाथ कलम ज्ञान भंडार लगाती है॰ 

 

पैनी कितनी भी हो तलवारें पर भीत नहीं ये खाती है,

परचम  सच्चाई  का  नित्य  नया  लहराती  है।

 

टेकते  अँगूठों  को  मुड़ना  ये बतलाती  है,

अंगूठा टेको को अक्सर लिखना सिखलाती है ।

अप्रकाशित एवं मौलिक 

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Comment by Meena Pathak on March 4, 2014 at 10:33am
Bahut sundar Annpurna Ji .. Badhai

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