For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बर्ताव
बर्ताव का अर्थ -- स्पर्श !
मुलायम नहीं..
गुदाज़ लोथड़ों में
लगातार धँसते जाने की बेरहम ज़िद्दी आदत

तीन-तीन अंधे पहरों में से
कुछेक लम्हें ले लेने भर से
बात बनी ही कहाँ है कभी ?


चाहिये-चाहिये-चाहिये.. और और और चाहिये
सुन्न पड़ जाने की अशक्तता तक
बस चाहिये

आगे,
देर गयी रात 

उन तीन पहरों की कई-कई आँधियों के बाद 
लोथड़े की
तेज़धार चाकू की निर्दयी नोंक
खरबूजा-खरबूजा खेलती है
सुन्न पड़े के साथ
बेमतलब सी भोर होने तक.

*******************************

-सौरभ

(मौलिक और अप्रकाशित)

 

Views: 1154

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 16, 2013 at 3:11pm

भाई जीत जी, आपकी टिप्पणी को बार-बार पढ़ रहा हूँ और रचना की पंक्तियों का अक्स यों उभर कर आ रहा है मानों आईना देख रहा होऊं. आपकी रचनात्मकता मंच के लिए आश्वस्ति का कारण है.

आपका अनुमोदन एक संवेदनशील पाठक का अनुमोदन है.
शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 16, 2013 at 3:06pm

आदरणीया राजेश कुमारीजी, आपकी संवेदना की मुखर भाषा ने मुझे बहुत हद आश्वस्त किया है.
सामाजिक और व्यावहारिक सम्बन्धों में घुस आयी आक्रामक अपेक्षाओं को शब्द देने का प्रयास आपको प्रभावित कर पाया, यह मेरी रचना के लिए संतुष्टि है.
सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 16, 2013 at 2:57pm

अनन्य अनुज अभिनव अरुणजी, आदरणीय सुशीलजी, अदरणीया मीनाजी, भाई अरुन अनन्त जी, भाई सारथीजी, आपकी शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद.

Comment by बृजेश नीरज on October 16, 2013 at 2:24pm

कुछ कहने के मैं तो योग्य नहीं! कविता अन्दर तक झिंझोड़ देती है!

सतही और औपचारिक भावार्थों में जीते हम उस दिशा में दौड़े जा रहे हैं, जहाँ सूरज एक कृत्रिम मुस्कान लिए हमारा स्वागत करने को उद्दत है. छिछली चाहतों का बोझ ढोते संवेदनाओं की परतें चिंदी-चिंदी हो चुकी हैं. रिश्ते बाजारवादी मनोवृतियों में महज़ खरीद-फरोख्त की मानसिकता की भेंट चढ़ गए हैं.

रचना एक उदहारण है उन तमाम लोगों के लिए जो अतुकांत को महज़ गद्य की पंक्तियों का गठ्ठर समझते हैं. अतुकांत को समझने सीखने के लिए इस रचना से बेहतर उदहारण क्या हो सकता है!

आप एक उदहारण हैं कि रचनाकार यदि अपने कर्म के प्रति सतर्क, ईमानदार और सचेत है, तो विधा उसके रस्ते का रोड़ा नहीं बनती. सिर्फ सतही भावाभिव्यक्तियाँ को ओढ़ना-बिछाना ही रचनाकर्म नहीं.

आपको सादर नमन!

Comment by Saarthi Baidyanath on October 16, 2013 at 2:02pm

चाहिये-चाहिये-चाहिये.. और और और चाहिये 
सुन्न पड़ जाने की अशक्तता तक 
बस चाहिये ..

गज़ब का चुम्बकत्व, रचना में निहित है ! बहुत बढ़िया साहब ....क्या कहूँ ...अनंत बधाइयाँ ! सादर :)

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 16, 2013 at 1:10pm

आदरणीय सौरभ सर कोटिशः बधाई स्वीकारें, कविता पर कुछ कहना सरल नहीं भावपद इतना गहरा है कि कुछ कहने हेतु सम्पूर्ण शब्दकोष टटोलने पर हासिल भी हुआ तो केवल निःशब्द. एक ही सांस में कई बार पढ़ गया पुनः बहुत बहुत बधाई

Comment by Meena Pathak on October 16, 2013 at 12:13pm

निःशब्द हूँ आदरणीय सौरभ जी आप की रचना पढ़ कर | रचना हेतु बधाई स्वीकारें 

सादर 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 16, 2013 at 11:21am

रिश्तों की भी अपनी अलग दुनिया होती हैं, उसी दुनिया के गर्त से निकली एक रचना जो हीरे मे हुई अनगिनत बारीक कटिंग और हर कटिंग मे निहित एक कोण तथा हर कोण से खुद को दिखता एक बिंब, बहुत ही खूबसूरत हुई है यह रचना, बहुत बहुत बधाई इस कृति पर | 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 16, 2013 at 11:15am

आदरणीय सौरभ भाई , बड़ा कठिन है आपके इशारों को समझना !!!!! फिर भी !!!!!

रिश्तों मे मरती हुई , मरी हुई आत्मीयता और केवल स्थूलता की परिधि में सिमटते हुये रिश्तों की वस्तविकता की ओर इशारा करती हुई आपकी ये रचना लगती है !!! आदरणीया राजेश कुमारी जी से सहमत हूँ // पाठको की परीक्षा तो जरूर लेगी ये रचना //

!!!!!! सादर नमन आपको !!!!!!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 16, 2013 at 10:40am

नाजुक रिश्ते, जो कि इतने प्रभावी व् मजबूत होते है,मन की कई कई नकारात्मक अन्तर्वेद्नाओं के लम्बे खिचाव से भी उन पर कोई असर नही पड़ता, इक पल की सकारात्मक सोच उन्हें, वापस उसी गहराई से जोड़े रखती है, बस एक-दूसरे की भावना समझ आ जानी चाहिए, अथाह गहरी, बार बार अपने गहरे भाव की ओर आकर्षित करती कविता पर बहुत बहुत बधाई स्वीकारें आदरणीय सौरभ जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"प्रस्तुति को आपने अनुमोदित किया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रवि…"
50 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
Saturday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service