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वजीरे आला आप भारी विरोध के चलते धैर्य रख इतने समय से शासन कर रहे है । आपके अधिकाँश मंत्रियों पर घोटाले सहित कई प्रकार के आरोप लग रहे है । कई मंत्रियों को तो स्तीफा भी देना पड़ा है । यहाँ तक की कई मामलो में तो न्यायालय ने भी तल्ख़ टिप्पणियाँ तक की है । तिरस्कार पूर्ण वचन बहुत दारुण होता है ।  यह कहते हुए युवराज ने राजनीति के गुर सीखने हेतु जिज्ञासा प्रकट करते हुए पूछा- फिर भी आप यह सब सहन कारते हुए मौन एवं धैर्य रख कैसे शासन कर रहे है ?

वजीरे आला यह सब सुनकर कुछ देर मौन रहे । फिर बोले -

जब चारो और से घोर विरोध हो रहा हो, तो विरोध का सामना करने का दुस्साहस न कर, कुछ समाय मौन रहकर धैर्य रख हो रहे विरोध की उपेक्षा करते हुए विरोध शांत होने देना चाहिए । यह ध्यान रखना चाहिए कि आरोप-प्रत्यारोप के जरिये किसी बात का बतंगड़ न बने । मौन रहे और विरोध शांत होने दे ।

(मौलिक व् अप्रकाशित)

 

-लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला 

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Comment by rajesh kumari on August 30, 2013 at 10:12am

आदरणीय लक्ष्मण जी क्या सटीक व्यंग्य किया है लघु कथा के माध्यम से वाह बहुत बढ़िया सामयिक लघु कथा हेतु बधाई आपको 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 30, 2013 at 9:55am

आपको कहनी पसंद आई, रचना की सार्थकता पुष्ट हुई | आपका हार्दिक आभार आदरणीया वंदना तिवारी जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 30, 2013 at 9:52am

कहानी पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार श्री गिरिराज  भंडारी जी एवं श्री विजय मिश्र जी, सादर   

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 29, 2013 at 11:55pm

सच

सच ! बहुत ही सटीक लघुकथा, बधाई आदरणीय लक्ष्मण जी

Comment by Vindu Babu on August 29, 2013 at 7:02pm
वाह!
क्या व्यंगात्मक कहानी कही है आपने!
सच में समसामयिक परिदृश्य का स्पष्ट दर्शन कराती हुई लघुकथा प्रस्तुत की है आदरणीय।
आपको बहुत बधाई।
सादर
Comment by विजय मिश्र on August 29, 2013 at 6:09pm
मौन किन्तु स्वीकृति का लक्षण है और यहाँ तो लांछनों की एक पर्वतमाला सामने खड़ी है ,यह 'अति सर्वत्र वर्जयेत ' के विपरीत भी जा रहा है जिसका दुष्परिणाम बिभिन्न रूपों में जग -जगत्र स्पष्ट है . व्यंग और उपहास मिश्रित सुंदर रचना .साधुवाद लक्ष्मणजी .

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 29, 2013 at 1:36pm

लक्ष्मण भाई , वर्तमान पर सटीक बैठती लघु कथा !! बधाई !!

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