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चाँद बादल में छुपा [नज़्म]

चाँद बादल में छुपा,  परछाइयाँ भी खो गयीं ।
साथ मेरा छोड़ कर , तनहाइयाँ भी सो गयीं ।

चुप्पियों की बाढ़ आयी , सारे मेले बह गये ।
महफ़िलों की गोद में भी , हम अकेले रह गये ।

खामोश मेरे हाल पर , खामोशियाँ भी हो गयीं ।
साथ मेरा छोड़ कर , तनहाइयाँ भी सो गयीं ।

अब तो कोई दर्द कोई गम भी बाकी ना रहा ।
मेरी इस आवारगी का , कोई साथी ना रहा ।

चैन तो ना मिल सका बेचैनियाँ भी खो गयीं ।
साथ मेरा छोड़ कर तनहाइयाँ भी सो गयीं ।

क्या करेंगे हम किसी से, कोई रिश्ता जोड़कर ।
लो अँधेरे में गया ,साया भी हमको छोड़कर ।

आँखों में जो छायी रहीं, रंगीनियाँ भी खो गयीं ।
साथ मेरा छोड़ कर, तनहाइयाँ भी सो गयीं ।

नीरज

Views: 1414

Comment

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Comment by shalini kaushik on May 21, 2013 at 12:57am
बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति
Comment by Neeraj Nishchal on May 20, 2013 at 4:58pm

सौरभ पाण्डेय जी बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by Neeraj Nishchal on May 20, 2013 at 4:57pm

अभिनव अरुण साहब हार्दिक अभिनन्दन

Comment by Abhinav Arun on May 20, 2013 at 3:37pm

क्या करेंगे हम किसी से, कोई रिश्ता जोड़कर ।
लो अँधेरे में गया ,साया भी हमको छोड़कर ।

बहुत सुन्दर नज़्म कही है आपने हार्दिक बधाई  !!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 20, 2013 at 2:01pm

आपका प्रयास अच्छा है.. आप अपनाये गये बह्र के वज़्न को लिख दें, यह उचित होगा. 

निम्नलिखित मिसरे देख लें.. 

खामोश मेरे हाल पर , खामोशियाँ भी हो गयीं   और   आँखों में जो छायी रहीं, रंगीनियाँ भी खो गयीं

एक सुझाव : सीखने का दौर है, रचनाओं/ ग़ज़ल/ नज़्म के साथ फोटो-पिक्चर आदि नत्थी करने के चोंचलों में न पड़ा करें.

शुभेच्छाएँ

 

Comment by राजेश 'मृदु' on May 20, 2013 at 1:10pm

नज्‍म तक तो ठीक है लेकिन उसके साथ ये एड किसलिए, एक के साथ एक मुफ़त का ऑफर तो नहीं चल रहा है यहां

कृपया ध्यान दे...

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