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दर्द चेहरे पे नहीं भूल से लाया करिए "ग़ज़ल"

===========ग़ज़ल===========

 

दर्द चेहरे पे नहीं भूल से लाया करिए

लुत्फ़ लेता है ज़माना ये छुपाया करिए

 

सच है हर बात तो फिर सामने आया करिए

आइने से यूँ निगाहें न चुराया करिए

 

हर कोई अपना नज़र तुमको भी आएगा  

चंद लम्हों को सही “मैं” तो भुलाया करिए

 

चश्म में इश्क अगर देखना हो सच्चा तो

कोई मजलूम कलेजे से लगाया करिए

 

हो बड़े गर तो गरीबों को सहारा देकर

इस अमीरी को कभी आप भुनाया करिए

 

पत्थरों में है खुदा अब भी नहीं इंसां में

अपनी हर पीर किसी बुत को सुनाया करिए

 

बाद गिरने के फखत कोसना अच्छा तो नहीं

“दीप” फिर राह से पत्थर तो हटाया करिए

 

 

संदीप पटेल “दीप”

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 1, 2013 at 1:12pm

हर कोई अपना नज़र तुमको भी आएगा  

चंद लम्हों को सही “मैं” तो भुलाया करिए.. 

इस शेर के परिप्रेक्ष्य में एक सुन्दर ग़ज़ल हुई है. बहुत बहुत बधाई, भाई संदीपजी.

पत्थरों में है खुदा अब भी नहीं इंसां में - इस मिसरा में अब के साथ भी का आना मैं समझा नहीं.

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on March 31, 2013 at 10:39pm

हो बड़े गर तो गरीबों को सहारा देकर

इस अमीरी को कभी आप भुनाया करिए

 

पत्थरों में है खुदा अब भी नहीं इंसां में

अपनी हर पीर किसी बुत को सुनाया करिए

बहुत बढ़िया गजल हुई है दीप भाई....
मुबारकबात !!!

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 31, 2013 at 5:27pm

बहुत खू उम्दा गजल बधाई भाई संदीप पटेल जी, पर -

दर्द है छुपाये न छुपे, चेहरें पर आही जाता है 

सच झूंट का चेहरा आइना बता ही देता है | 

अभी हाल ही निधन हो गया श्री तारा दत्त "निर्विरोध" का उन्होंने लिखा है -

तुम क्यों चेहरा देख रहे हो, तुम्हे कौन सी शंका है 

चेहरा तो वो देखा करते, जिनका रूप ढला करता है |

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