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लघुकथा : उत्तर की तलाश

एक मित्र ने पूछा, "तुम कब पैदा हुए थे ?"

"शायद तब जब लाल  बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री थे, नहीं शायद गुलजारी लाल नन्दा या इंदिरा में से कोई प्रधानमंत्री था," मैंने उत्तर दिया।

"तुम्हें इतना भी याद नहीं।"

"बच्चा था न- दुनियादारी, राजनीति, से दूर"

"अब क्या हो?"

"अब भी एक इंसान हूं-छल, कपट, राजनीति, माया-मोह में जकड़ा"

"मगर इंसान हो ?"

"हां"

"पर कैसे ? इंसानों के कौन से लक्षण हैं तुममें ?"

मैं चुप रहा, कुछ सोचा फिर उत्तर की जगह मैंने एक प्रश्न दाग दिया, "तुम क्या हो ?"

मित्र खामोश था । वह शायद जानता था कि आगे फिर मैं उसका अगला प्रश्न ही दोहराने वाला हूँ ।

एक सीधे प्रश्न के उत्तर की तलाश में हम देर तक एक दूसरे को देखते रहें |

आज भी उत्तर तलाश रहे हैं कि इंसानों के कौन से लक्षण हैं हममें ?

                                                                                       - बृजेश नीरज

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Comment by बृजेश नीरज on February 25, 2013 at 6:57pm

इंसानियत इंसानी गुणों को सहेजकर रखने से पैदा होती है। एक अज्ञानी भी इंसान है यदि उसका दिल साफ है। किसी दूसरे व्यक्ति को भी यदि हम इंसान ही समझें, उसी तरह व्यवहार करें, सम्मान दे ंतो शायद इंसानियत के बीज अंकुरित होने शुरू हो जाएंगे। अपने दम्भ में जीते जाना इंसानियत नहीं।

Comment by Vindu Babu on February 25, 2013 at 6:45pm
बहुत गहन प्रश्न उभारा आपने!
'मनुष्य' का अर्थ तो स्वामी विवेकानन्द जैसे महान पंडित ही समझ पाए हैं तभी उन्होनें कह ही दिया-मैं उस प्रभु का पुजारी हूं जिसे अज्ञानी लोग 'मनुष्य'...''
इसका मतलब 'इंसान'(मनुष्य) देवतुल्य होता होगा!
शायद अध्ययन(व्यक्तिवों या पुस्तकों का) करते करते... एक दिन अर्थ मिल ही जाए,निरन्तरता बनाए रखने की आवश्यकता है।
सादर
Comment by बृजेश नीरज on February 25, 2013 at 4:36pm

आदरणीया प्राचीजी
आपका बहुत बहुत आभार! रचना आपको पसन्द आयी लिखना सार्थक हुआ।

Comment by बृजेश नीरज on February 25, 2013 at 4:35pm

आदरणीय लक्ष्मण जी
आपका बहुत धन्यवाद!

Comment by बृजेश नीरज on February 25, 2013 at 4:34pm

आदरणीय प्रदीप जी
आपने मेरे कथन का मर्म स्पष्ट कर दिया। आपका बहुत आभार!
सादर!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 25, 2013 at 3:23pm

आज भी उत्तर तलाश रहे हैं कि इंसानों के कौन से लक्षण हैं हममें...

अपने ही अंतर्मन पर तीखा प्रहार करती सार्थक लघुकथा..

हार्दिक बधाई 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on February 25, 2013 at 3:05pm

ढूदते रह जायेंगे

जब नहीं रही इंसानियत 

इंसान कहाँ से आयेंगे 

आदमी आदमी एक दूजे को 

इंसान कह बहलाएँगे 

बधाई. 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 25, 2013 at 10:41am

इंसान के निशाँ पहचाने वाला ही बता सकेगा, वह भी जब पहले वह खुद इंसान बन पायेगा 

कहानी पाठक को सोचने को मजबूर कर देती है । अच्छी कहानी के लिए बधाई श्री ब्रिजेश जी 

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