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मिला राज्य सम्मान- (दोहे)

-लक्ष्मण लडीवाला

तामस सात्विक राजसी, तीनो ही अभिमान, 
रावण और कुम्भ करण, तामस राजस जान।

सात्विक मन से आदमी, करे प्रभु गुणगान,
देख विभीषण को जरा, वे इसके  प्रतिमान ।

कुम्भ करण सोता रहा, दिल में भरा प्रमाद, 
अहंकार था तामसी, जीवन भर अवसाद ।

राजसी अहंकार वश, आजाये अभिमान,
अभिमानी रावण बना,रह न सका सम्मान।

रावन वीर महान था, महा भक्त गुणवान,
राजसी अहंकार वश, बच न सका अभिमान।

सात्विक अहंकारी पर, प्रभु करते है अभिमान, 
सात्विक मन विभीषण को,मिला राज्य सम्मान।

-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला,जयपुर

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Comment

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Comment by Ashok Kumar Raktale on February 19, 2013 at 9:14am

वाह! सुन्दर  आदरणीय लड़ीवाला साहब.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 18, 2013 at 7:02pm

 दोहे पसंद पसंद कर अनुमोदन करने के लिए हार्दिक आभार मीना पाठक जी 

Comment by Meena Pathak on February 18, 2013 at 6:59pm

बहुत सुन्दर दोहे  ... बधाई 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 18, 2013 at 5:41pm

भाव अभिव्यक्ति पसंद कर सराहने के लिए अपका हार्दिक आभार श्री राम शिरोमणि पाठक जी 

Comment by ram shiromani pathak on February 18, 2013 at 5:39pm

बहुत सुन्दर भावों और विचारों में पगी कविता के लिए हार्दिक साधुवाद आपको - श्री लडिवाला जी

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 18, 2013 at 5:28pm

आपकी उत्साहवर्धक टिपण्णी के लिए हार्दिक आभार श्री अभिनव अरुण जी 

Comment by Abhinav Arun on February 18, 2013 at 3:39pm

आपकी रचनाओं का ध्यात्मिक और ख्यानिक पक्ष बहुत मजबूत होता है श्री लडिवाला जी यह रचना भी बहुत सशक्त है हार्दिक बधाई !!

 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 18, 2013 at 2:13pm

हार्दिक आभार श्री प्रवीण मालिक जी

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 18, 2013 at 2:12pm
आपका मार्गदर्शन मझे प्रोत्साहित करता है । उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार श्री अशोक रक्ताले जी 
दोहा संशोधित किया है, एक बार पुनः अवलोकन करे । सादर 
Comment by Parveen Malik on February 18, 2013 at 11:23am

सुन्दर दोहे ... बधाई 

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