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निमंत्रण 

निमंत्रण कैसा भी हो 
सुखद प्यारा लगता है 
मिलते हैं कई लोग 
जग  न्यारा लगता है 
नारी शशक्तिकरण विषय पर 
काव्य पाठ का न्योता  आया 
जाना था पति पत्नी को 
कंजूस आयोजक ने 
एक टिकट भिजवाया
रूठी पत्नी मेरा जाना 
उसे फूटी आँख न भाया  
आशीष दे आयोजक को 
मैं  मन ही मन मुस्काया  
था विषय अति गंभीर 
पत्नी अगर ध्यान से सुनती 
वापस आ नित उससे ठनती
मिलना था प्रशस्ति पत्र 
और एक  रेशमी दुशाला 
इतना ही पा खुश हो जाता 
ये कवि मतवाला 
भरी सभा में रचना पढ़ 
ताली खूब बजवाते 
टी वी अखबारों में 
फोटो भी  छप  जाते
वापस घर आ मित्रों में 
थोथे गाल बजाते 
सीना चौड़ा कर 
सम्मलेन की बात बताते 
एक कवि को जग में क्या चाहिए 
तपती सड़क नंगे पाँव 
नदी किनारा सूखी  हवा खाइए 
दिवस कोई हो रात्रि में मनाते 
हिंदी दिवस अंग्रेजी में सजाते
यहाँ भी था वो ही अनोखा चलन 
अगले सम्मलेन में बुलाएँ जाएँ 
विषयान्तर कर कवि पढ़ रहे थे 
आयोजकों की शान में वंदन 
मुद्दे पर कविता किसी ने न सुनाई 
कवियत्रियों ने भी आवाज न उठाई 
प्रतीक्षा की घडी समाप्त हुई 
पाठ हेतु मेरी बारी आई 
जैसा देश वैसा वेश 
की नीति अपनाई 
विषयान्तर कर 
मैने भी कविता सुनाई 
 
  

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 24, 2012 at 7:33pm

जय होऽऽऽऽ

सादर आदरणीय प्रदीपजी


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 24, 2012 at 7:00pm

आदरणीय प्रदीप कुशवाहा जी, यह रचना हौले हौले से गुदगुदा गई, अच्छी रचना, बधाई स्वीकार करें |

कृपया ध्यान दे...

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