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तेरी यादों का श्रृंगार सजा

तेरी यादों का श्रृंगार सजा
मैं भूले गीत सुनाता हूँ.
कृन्दन-रोदन के साज बजा
जीवन रीत सजाता हूँ.

वो वल्लरियों से पल
तेरी सुध से महके ऐसे
फिर से सिंचित कर उर में
मन को फिर समझाता हूँ.

कल बारिस की झनझन में
पैजनियाँ तेरी झंकार गई
मैं उन्हीं पुराने सुर में ही
फिर से गीत सजाता हूँ.

मन पुलकित होता बेसुध मैं
कम्पित करता तार वही
उसी भँवर में बार-बार मैं
घूम-घूम कर आता हूँ.!!

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Comment

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Comment by Raj Tomar on October 10, 2012 at 9:55pm

 आदरणीया राजेश कुमारी जी, 

बहुत बहुत आभार आपका, रचना पसंद करने के लिए. :)


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 10, 2012 at 8:39pm

वो वल्लरियों से पल 
तेरी सुध से महके ऐसे 
फिर से सिंचित कर उर में 
मन को फिर समझाता हूँ.----वाह वाह पूरी रचना ही मन्त्र मुग्ध कर गई बार बार पढने को मन किया बहुत बहुत बधाई राज तौमर जी 

कृपया ध्यान दे...

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