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अधजल गगरी छलकत जाये प्राणप्रिये......

 

कैसे – कैसे मंजर आये प्राणप्रिये
अपने सारे हुये पराये प्राणप्रिये |


सच्चे की किस्मत में तम ही आया है
अब तो झूठा तमगे पाये प्राणप्रिये |


ज्ञान भरे घट जाने कितने दफ्न हुये
अधजल गगरी छलकत जाये प्राणप्रिये |


भूखे - प्यासे हंसों ने दम तोड़ दिया
अब कौआ ही मोती खाये प्राणप्रिये |


यहाँ राग - दीपक की बातें करता था
वहाँ राग – दरबारी गाये प्राणप्रिये |


सोने – चाँदी की मुद्रायें लुप्त हुईं
खोटे सिक्के चलन में आये प्राणप्रिये |


सच्चाई के पाँव पड़ी हैं जंजीरें
अब तो बस भगवान बचाये प्राणप्रिये |


अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)

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Comment

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Comment by Albela Khatri on August 5, 2012 at 10:30pm

waah waah waah

kya baat hai pranpriye !

Comment by UMASHANKER MISHRA on August 5, 2012 at 9:05pm

कैसे – कैसे मंजर आये प्राणप्रिये
अपने सारे हुये पराये प्राणप्रिये | सत्यवचन गुरुदेव बहुत सही कहा

सच्चे की किस्मत में तम ही आया है
अब तो झूठा तमगे पाये प्राणप्रिये |चाटुकार  तलवा चाटू ही तमगा ले रहे हैं भाई जी   

ज्ञान भरे घट जाने कितने दफ्न हुये
अधजल गगरी छलकत जाये प्राणप्रिये |यह भी कटु सत्य है                            

भूखे - प्यासे हंसों ने दम तोड़ दिया
अब कौआ ही मोती खाये प्राणप्रिये |गहरा व्यंग बहेतरीन सर जी                        

यहाँ राग - दीपक की बातें करता था
वहाँ राग – दरबारी गाये प्राणप्रिये | सुन्दर चित्रण                                     

सोने – चाँदी की मुद्रायें लुप्त हुईं
खोटे सिक्के चलन में आये प्राणप्रिये |बहुत ही गहरी बात कह गये

सच्चाई के पाँव पड़ी हैं जंजीरें
अब तो बस भगवान बचाये प्राणप्रिये | सच्चाई के पाँव पड़ी हैं जंजीरें तार तार कर दिया

बहुत ही उम्दा रचना के लिए हार्दिक बधाई अरुण भाई

 

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