For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओढ़ शून्य का झीना आँचल
बढ़ चलें अनायास ही...
शून्य में समेट लेने
प्रकृति का अनंत विस्तार
या फिर,
रचने शून्य से ही
सृजन के अनंत तार...  
जिसमे,
वक़्त का दरिया
हो लय,
रहे मात्र क्षण...
मीलों लम्बा फासला,  
मुकाम, 
डग भर,
तत्क्षण...
नील सागर निहित  
रत्न भंडारों का मोह
बाँध न पाए
चेतना के कदम....
 
डॉ. प्राची

Views: 598

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Yogi Saraswat on July 4, 2012 at 4:58pm
मीलों लम्बा फासला,  
मुकाम, 
डग भर,
तत्क्षण...
नील सागर निहित  
रत्न भंडारों का मोह
बाँध न पाए

चेतना के कदम

बहुत खूब , आदरणीय डॉ. प्राची जी ! बहुत सुन्दर शब्द

Comment by Rekha Joshi on July 4, 2012 at 11:51am

आदरणीया प्राची जी ,

अनंत की गहराई में डूबी हुई ,चेतना के कदम ,बहुत बहुत बधाई 
Comment by अरुन 'अनन्त' on July 4, 2012 at 11:30am

सुन्दर रचना

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 4, 2012 at 9:44am
रहे मात्र क्षण...मीलों लम्बा फासला, मुकाम,डग भर,तत्क्षण...
सुन्दर शब्दों के अहसास में मै भी डूब गया क्षणभर- हार्दिक बधाई प्रचिजी 
Comment by आशीष यादव on July 4, 2012 at 1:17am

शून्यता को अनन्त करना और फ़िर अनन्त को शून्य मे समाहित करने का ही काम करती है चेतना. सुन्दर रचना पर बधाई स्वीकारें

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 3, 2012 at 11:19pm
या फिर,
रचने शून्य से ही
सृजन के अनंत तार...  
जिसमे,
वक़्त का दरिया.............
हो लय,
रत्न भंडारों का मोह
बाँध न पाए
चेतना के कदम....
डॉ प्राची जी बहुत सुन्दर ....काश ये बाँध न पाए और हम मुक्त मन से चैतन्य बन शून्य से शिखर की ओर....... 
  ..भ्रमर ५ 
Comment by UMASHANKER MISHRA on July 3, 2012 at 11:16pm

बहुत सुन्दर शून्यता की गहराई का आभास कराती रचना

डा.प्राची सिंह  जी बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
17 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
yesterday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"आ. भाई आजी तमाम जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post काश कहीं ऐसा हो जाता
"आदरणीय अमन सिन्हा जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर। ना तू मेरे बीन रह पाता…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service