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कब तक झुट्टे को पूजोगे (ग़ज़ल)

बह्र : 22 22 22 22

जब तक पैसे को पूजोगे

चोर लुटेरे को पूजोगे

जल्दी सोकर सुबह उठोगे 

तभी सवेरे को पूजोगे

खोलो अपनी आँखें वरना

सदा अँधेरे को पूजोगे

नहीं पढ़ोगे वीर भगत को

तुम बस पुतले को पूजोगे

ईश्वर जाने कब से मृत है

कब तक मुर्दे को पूजोगे

अब तो जान चुके हो सच तुम

कब तक झुट्टे को पूजोगे

----------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 28, 2022 at 6:22pm

आदरणीय चेतन प्रकाश जी, काफ़िया को अलग अलग जगह पर अलग अलग तरह से परिभाषित किया गया है कुछ के अनुसार "क़ाफ़िया वह शब्द है जो प्रत्येक शे'र में रदीफ़ के ठीक पहले आता है और सम तुकांतता के साथ हर शे'र में बदलता रहता है।" और कुछ के अनुसार "काफ़िया ग़ज़ल के किसी शेर की लाइन के तुकांत को कहते हैैं।"

वैसे रेख़्ता पर दोनों ही अर्थ दिए हुए हैं| "कविता या पद्य में अंतिम चरणों में मिलाया जाने वाला अनुप्रास, एक ही अक्षर पर ख़त्म होने वाले शब्द, अंत्यानुप्रास, तुकसज, तुकांत शब्द"| सादर 

Comment by Chetan Prakash on August 28, 2022 at 5:26pm

आदाब,  भाई धर्मेंद्र कुमार सिंह,  क्वाफी का निश्चय  मतले से होता है, जो आपके कहे अनुसार , काफिया ,  ( ए ए ) होता  है । " पुतले, मुर्दे, झुट्टे " क्वाफी  कैसे  हो सकते हैं, विचारणीय प्रश्न है , देखिएगा  !

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 28, 2022 at 4:48pm

आदरणीय चेतन प्रकाश जी, यहाँ काफ़िया पैसे, लुटेरे, सवेरे, पुतले इत्यादि है| ग़ज़ल में मात्राओं का तुकांत लिया जा सकता है| सादर 

Comment by Chetan Prakash on August 28, 2022 at 4:10pm

नमस्कार,  भाई धर्मेंद्र कुमार सिंह,  बह्र  दी है गज़ल  होनी चाहिए,  सो आपका  काफिया  क्या  है, स्पष्ट  नही  हुआ  , बताइएगा,  कृपया  !

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