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सावन की तैयारी है-ग़ज़ल

22-22-22-22-----22-22-22-2

प्रीत रीत हम निभा न पाये, खूब हुई गद्दारी है।
ग़म का ताप चढ़ा है मन पर, सावन की तैयारी है।।

इस गुलशन में स्वप्न पुष्प के, बाग़ लगाना अपनी ख़ता।
खारे जल से इसका सिंचन, करना तो लाचारी है।।

चिटख गया है शीशा-ए-दिल,चुभता है, हर धड़कन पर।
साँसें थामे रखना मुश्किल, जीना इक दुश्वारी है।।

उसे बेवफ़ा बोलूँ महफ़िल, में ये कैसे है सम्भव।
जिसे पूजता रहा उसे बदनाम करूँ, मक्कारी है।।

जब भी हाथ दुआ में उट्ठें, सिर्फ कामना एक करूँ।
उसके आँगन खुशियाँ खेलें, मेरी ज़िम्मेदारी है।।

मौलिक-अप्रकाशित

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Comment by जयनित कुमार मेहता on May 25, 2016 at 3:23pm
ओह! ओह!

क्षमा करें आ. पंकज जी।
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on May 25, 2016 at 2:36pm
aadarneey jayneet bhai ye meri gazal hai, main pankaj mishra
Comment by जयनित कुमार मेहता on May 15, 2016 at 3:13pm
आदरणीय दिनेश जी, ग़ज़ल अच्छी लगी।
ख़ासकर ये शेर-

उसे बेवफ़ा बोलूँ महफ़िल, में ये कैसे है सम्भव।
जिसे पूजता रहा उसे बदनाम करूँ, मक्कारी है।।

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