For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पिज़र - लघु कथा जानकी बिष्ट वाही

" छाना बिलौरी झन दिया बौज्यू , लागला बिलौरी को घामा ." ( बेटी अपने पिता से कहती है।मेरा ब्याह छाना बिलौरी गाँव में मत करना।वहाँ की जानलेवा धूप में काम नहीं कर पाऊँगी।) गुनगुनाती हुई बसन्ती पीठ में लकड़ियों का बोझ उठाये पाले से आच्छादित रास्ते पर एक सार लय में पावँ जमा-जमा कर जंगल से नीचे उत्तर रही है।जरा सी लापरवाही उसे नीचे गरजती -उफनती काली नदी में विलीन कर देगी।

"आज़ बबा होते तो उसे ये सब क्यों करना पड़ता?" कुहासे बादलों की तरह यादें मन में घुमड़ने लगी।बबा चाहते थे बसन्ती खूब पढ़े।और उनकी शह पर उसने दसवीं में जिले में टॉप किया था। पर हाय री किस्मत, एक रात बबा जो सोये तो फ़िर कभी नहीं उठे।
चाचा ने सिर पड़ी जिम्मेदारी जल्दी ही उतार फेंकी। और बसन्ती ब्याह कर इस गाँव आ गई।
जहाँ कुछ किलोमीटर की परिधि ही औरत के जीने -मरने की शर्त है।एक अदृश्य पिंज़र में सारी औरतें कैद हैं।उनकी आकांक्षाओं के कोई मायने नहीं हैं।
उसकी सास ,उनकी भी सास और आने वाली नवोढ़ा बहुएं एक ही धुरी पर चलती हैं।
दुनियाँ में कौन सरकार,कहाँ दंगे ,कहाँ जेहाद ,क्या ग्लोबल वॉर्मिंग उन्हें इन सबसे कोई लेना-देना नहीं।

पतझड़ ,सावन,बसन्त,बहार इनके लिए सारे मौसम एक समान हैं।काम के मौसम।
बसन्ती अक्सर इन्हीं रास्तों पर से गुज़रते हुए सोचती है। वह अपनी चन्दा को इस अदृश्य कैद से ज़रूर मुक्त कराएगी।
जहाँ कोई एक मौसम उसकी चाहतों का भी होगा।

मौलिक एवम् अप्रकाशित

Views: 713

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Janki wahie on December 22, 2015 at 10:11pm
सादर हार्दिक आभार सखी ।आपकी टिप्पणी चिंतन योग्य है। नमन
Comment by kanta roy on December 22, 2015 at 12:49pm

आदरणीया जानको जी , इस प्रस्तुति ने मेरा मन मोह लिया है। बड़ी नाजुकी से आपने नारी के जीवन में ख्वाहिशों की गठरी तले दबते हुए का भाव सम्प्रेषित किया है और इस लिहाज़ से ,कथा का शिल्प गजब का है ,
लेकिन बात जब लघुकथा की है तो इसमें मुझे लेखक की दखल साफ़ -साफ़ दिखाई दे रही है। क्या कथा की नायिका सरकार, दंगे , जेहाद , ग्लोबल वॉर्मिंग की चिंतन करने लायक स्थिति में है ? क्या इन धुरियों में जहां उनकी सास की पिछली अगली पीढ़िया घूमती है वहाँ इस चिंतन का औचित्य है ? पात्रा का दसवी में उत्तीर्ण होना ही इस चिंतन को रोपित करने के लिए वाजिब तथ्य है ?

मैं इस कथा पर सर जी की भी नजरिये का शिद्दत से इंतज़ार करुँगी। सादर।

Comment by Janki wahie on December 20, 2015 at 2:05pm
सादर आभार आ.प्रतिभा जी ।मुँह अँधेरे जगना रात गए सोना य नियति कइयों की रूह कँपा दे। कथा के मर्म को समझ कर अपनी अनमोल टिप्पणी से कथा को मान देने के लिए तहेदिल से शुक्रिया।
Comment by pratibha pande on December 20, 2015 at 11:25am

 आदरणीया जानकी जी ,अपनी कथा के माध्यम से सुदूर उत्तराखंड की महिलाओं का जो आपने चित्र खींचा है  उसके लिए साधुवाद  .एक गाना और है जिसमे पति पत्नी को चाय के गिलास के साथ उठा रहा है ,प्रेम वश नहीं बल्कि इसलिए कि चाय पी और काम पे निकल   'उठ मेरी पुन्यूं की जूना'[मेरी पूनम की चाँद उठ जा ]   पुनः बधाई और शुभकामनाएँ 

Comment by Janki wahie on December 20, 2015 at 6:24am
तहेदिल शुक्रिया शहज़ाद जी आपकी टिप्पणी से कथा को मान मिला।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 19, 2015 at 7:21pm
एक और सुंदर सार्थक शिल्प मय प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई आपको आदरणीया जानकी वाही जी ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी रचना का संशोधित स्वरूप सुगढ़ है, आदरणीय अखिलेश भाईजी.  अलबत्ता, घुस पैठ किये फिर बस…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, आपकी प्रस्तुतियों से आयोजन के चित्रों का मर्म तार्किक रूप से उभर आता…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"//न के स्थान पर ना के प्रयोग त्याग दें तो बेहतर होगा//  आदरणीय अशोक भाईजी, यह एक ऐसा तर्क है…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, आपकी रचना का स्वागत है.  आपकी रचना की पंक्तियों पर आदरणीय अशोक…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी प्रस्तुति का स्वागत है. प्रवास पर हूँ, अतः आपकी रचना पर आने में विलम्ब…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद    [ संशोधित  रचना ] +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी  रचना को समय देने और प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आभार ।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्रानुसार सुंदर छंद हुए हैं और चुनाव के साथ घुसपैठ की समस्या पर…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी चुनाव का अवसर है और बूथ के सामने कतार लगी है मानकर आपने सुंदर रचना की…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी हार्दिक धन्यवाद , छंद की प्रशंसा और सुझाव के लिए। वाक्य विन्यास और गेयता की…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service