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अंतः स्मरण / लघुकथा

कैंसर का आखिरी चरण , अर्ध बेहोशी की हालत में , जिन्दगी की आखिरी साँस गिन रही थी वो । आॅक्सीजन मास्क भी अब निष्क्रिय सा प्रतीत हो रहा था ।
डूबते हुए लम्हों में कभी आँखें खोलती तो पल भर में बंद कर लेती । आई. सी. यू. वार्ड के बाहर बेटा -बहू , दामाद ,नाती -पोते सब आखिरी विदाई के वक्त साथ रहने की लालसा लिये उपस्थित थे ।

पति नम आँखों से माथे को सहलाते हुए उसे मरणासन्ना देख साथ - साथ बिताये धुप -छाँह जैसे समस्त पल , जिम्मेदारियों का सलीके से निर्वाह करने का भी स्मरण कर रहे थे ।

जाने क्या उस अर्ध बेहोशी में बड़बड़ाये जा रही थी । पति माथे पर हाथ रख उसको सम्बल दे रहें थे कि वो जोर से कराह उठी " सुशील , मै आपके बाँहों में मरना चाहती हूँ । "

" मम्मी ने अभी किसको याद किया है , ये सुशील कौन है ? " पास खड़ी बेटी के सवाल पर वे चौंक उठे ।

" सुशील जी , तुम्हारी मम्मी के कालेज के दोस्त है । "


मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 14, 2015 at 8:15pm

आदरणीया , कोई यूँ मन में बसा हो ---पर लम्बे दाम्पत्य जीवन के बाद  अंतिम क्षणों  में पति परिवार को छोड़कर  इतने गहरे अतीत  का इस प्रकार उभरना कथा  में चल सकता है यथार्थ जिन्दगी में नहीं . अंतिम क्षणों  में पोल खोलती इस रचना के लिए बधाई .


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Comment by मिथिलेश वामनकर on October 14, 2015 at 3:59pm

आदरणीया कांता जी, मन की गहराइयों में बसे स्मरण ऐसे ही अंतिम क्षणों में पूर्ण होने लालसा लिए आगे आते है. यही अंतिम इच्छा होती है. दमित इच्छाओं का जागना इन्हीं क्षणों में होता है. बढ़िया लघुकथा हुई है हार्दिक बधाई आपको 

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