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सिमट कर नहीं रहता / लक्ष्य “अंदाज़

सिमट कर नहीं रहता

~~~~~~~~~~~~~~~

(लक्ष्य “अंदाज़”)

वैसे भी मेरे घर की चिलमन में सिमट कर नहीं रहता !!

रंग नहीं खुशबू है वो मधुवन में सिमट कर नहीं रहता !!

गहरी आँखों के पानी में इक किश्ती कोई डूबी तो क्या ,

रूप का दरिया एक ही दरपन में सिमट कर नहीं रहता !!

कल जब वो उस जंगल से ज़ख़्मी हुए पाँव लिए लौटा ,

बोला ये बनफूल किसी चमन में सिमट कर नहीं रहता !!

गीली माटी की सौंध में लिपटे खस को क्या पहचानोगे,

जो शज़र चन्दन है वो सहन में सिमट कर नहीं रहता !!

तू दरिया के बालू सा सौदागर तुझे मूर्तियों में गढ़ लेंगे ,

सहरा की रेत मैं किसी सावन में सिमट कर नहीं रहता !!

सूखती फसल लहलहाती बेटियाँ इक टुकड़ा बंजर ज़मीं ,

अब किसान जीव का धडकन में सिमट कर नहीं रहता !!

‘अंदाज़’ को न बदनाम कर उसके अंदाज़ बड़े अच्छे हैं ,

ये बात और वो अब तेरे दामन में सिमट कर नहीं रहता !!

मौलिक एवं अप्रकाशित 

©2015 “ANDAZ-E-BYAAN” Dr.L.K.SHARMA

 

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Comment by गिरिराज भंडारी on September 17, 2015 at 7:28am

आदरणीय, शिल्प का आपने उल्लेख ही नही किया है , रचना मे कही बातें बहुत अच्छी लगी , आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 16, 2015 at 10:30am

शिल्प के बारे में गुनीजन बताएं पर भाव की दृष्टि से रचना प्रभावित करती है .

Comment by kanta roy on September 16, 2015 at 6:02am
कल जब वो उस जंगल से ज़ख़्मी हुए पाँव लिए लौटा ,
बोला ये बनफूल किसी चमन में सिमट कर नहीं रहता !!...... वाह!!! बहुत ही खूबसूरत गजल कही है आपने आदरणीय डा. लक्ष्मी कान्त जी । बधाई

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