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डॉक्टर के पास पहुचे प्यारे प्यारे पिचकू पाड़े ,
बोले डाक्टर साहब क्या काम है पिचकू भाई ,
संग में जो आये बोले, परेशान हैं पिचकू पाड़े ,
बावन जोड़ा पूड़ी रात में ये खाये थे ,
संग में दही तीन किलो उड़ाये थे ,
घर का खाना ये कभी न खाते हैं ,
एक दिन खाकर तीन दिन तक पचाते हैं
सुबह से परेशान हैं, होती हैं खूब दौड़ाई ,
रुक जाये भागम-भाग,जल्दी दे दो कुछ दवाई ,
डाक्टर बोला थोड़ा कम तो खाओ यार ,
उम्र बढ़ी हैं कुछ तो अपना रखो ख्याल ,
डॉक्टर को भी बडे प्यार से समझाए पिचकू पाड़े ,
शादी की मौसम हरदम आती नहीं है डाक्टर प्यारे ,
दवा देना है तो दे दो, नहीं तो हम उपरवाले के सहारे ,
खाना छोड़ूगा नहीं जो फ्री में मिल जाये प्यारे ,
पाच मन का मैं अदना सा प्राणी,
कहते सभी मुझे पिचकू पाड़े,

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Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 12, 2010 at 11:52am
बहुत ही बढ़िया गुरु जी , पिचकू पाड़े के बहाने और हास्य रस को हथियार बना कर आपने मुफ्तखोरो पर बहुत ही तीखा वार किया है, ये लोग ऐसे होते है कि चाहे कुछ भी हो जाय सुधरने वाले नहीं है, एक न सुधरने वाले असुधरे सज्जन को मैं भी जानता हू जो " मॉल महाराज का और मिर्ज़ा खेले होली " कहावत को चरितार्थ करते है,और वो तो होली ही नहीं मिर्ज़ा के माल से होलिका खेल लिये,
सुंदर रचना गुरु जी, बधाई है आपको,
Comment by baban pandey on June 12, 2010 at 6:03am
पिचकू पाड़े के रूप में आपने एक बहुत बड़ा व्यंग छेड़ दिया है ..आजकल हम सब पिचकू पाड़े की तरह जो फ्री में मिलता है use dakar lete है ..chahe वह सरकारी राशन हो ...या कोई दूसरी चीज . आज हर कोई बनाना चाह रहा है ...पिचकू पाड़े ....वाह भाई गुरु जी ...

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