For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

‘शहर’ जो गुलजार था!

‘शहर’ जो गुलजार था,

हाँ, धर्म का त्योहार था.

नजर किसकी लग गयी

क्यों अशांति हो गयी

दोष किसका क्या बताएं

मन में ‘भ्रान्ति’ हो गयी

होती रहती है कभी भी

छोटी मोटी तल्खियत

एक घटना को किसी ने

जोड़ देखा धर्म से

धर्म जो था जोड़ता

आपस में रंजिश हो गयी

एक चिंगारी ने गुलशन को

जलाया इस कदर  

उड़ के भागे कुछ परिंदे

गए झुलस कुछेक ‘पर’

धर्म को उलझाओ न यूं

यह बड़ा अपराध है

आ गले मिल जाओ फिर से

बन्दों का दिल साफ़ है

.

(मौलिक व अप्रकाशित) 

जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर, २२.०७.१५ 

Views: 733

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on July 23, 2015 at 7:04pm

आदरणीय सौरभ सर, और आदरणीय मिथिलेश जी, आपदोनो का ह्रदय से आभार ...मैंने इसी कथ्य पर आधारित दो रचनाएँ पोस्ट की है, जो अप्रूवल के प्रतीक्षा में है कृपया उनपर अपनी प्रतिक्रिया दें ...सुधार की गुंजाईश हमेशा बनी होती है  सुधारात्मक समीक्षा का ह्रदय से स्वागत करूंगा ...सादर!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 23, 2015 at 1:01pm

//फिर ’जो मन में आया’ लिखे की ’प्रस्तुति’ के लिए इस मंच को आपने चुना, भाईजी ? आशा है, आगे से आप किसी कथ्य को साझा करने में आवश्यक साहित्यिक गरिमा का खयाल करेंगे. वर्ना कुछ अति उत्साही किन्तु भावुक सदस्यों का क्या है, वे रचनाकार की प्रस्तुति क्या देखेंगे, बस नाम देख कर ’वाह-वाह’ करते रहेंगे.//

आदरणीय सौरभ सर आपने सही कहा. कई बार कतिपय रचनाओं से गुजरने के बावजूद भी उन पर टिप्पणी न करने का यह एक बड़ा कारण हुआ करता है. सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 23, 2015 at 12:23pm

//आपकी बात मैं समझ रहा हूँ और विनयपूर्वक कह रहा हूँ कि तुरंत फुरंत में मैंने दुखी मन से जो मेरे मन आया लिख दिया ...इसे मैं सोसल साईट पर नहीं रखना चाहता था. अनावश्यक विवाद नहीं बनाना चाहता था. //

फिर ’जो मन में आया’ लिखे की ’प्रस्तुति’ के लिए इस मंच को आपने चुना, भाईजी ? आशा है, आगे से आप किसी कथ्य को साझा करने में आवश्यक साहित्यिक गरिमा का खयाल करेंगे. वर्ना कुछ अति उत्साही किन्तु भावुक सदस्यों का क्या है, वे रचनाकार की प्रस्तुति क्या देखेंगे, बस नाम देख कर ’वाह-वाह’ करते रहेंगे.

आप विश्वास करें, कई अनगढ़ प्रतीत होती प्रस्तुतियों पर भी हमसभी ने ऐसे सहृदय ’पाठकों’ को ’रचना बहुत सही है’ का सर्टिफेकेट देते देखा है. क्या कीजियेगा ? आपकी समृद्ध प्रस्तुति की बेसब्री से प्रतीक्षा रहेगी.
शुभेच्छाएँ

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on July 23, 2015 at 11:21am

आदरणीय सौरभ सर, सादर अभिवादन! आपकी बात मैं समझ रहा हूँ और विनयपूर्वक कह रहा हूँ कि तुरंत फुरंत में मैंने दुखी मन से जो मेरे मन आया लिख दिया ...इसे मैं सोसल साईट पर नहीं रखना चाहता था. अनावश्यक विवाद नहीं बनाना चाहता था. अभी हाल ही में मैंने जमशेदपुर की अच्छाइयों के बारे में बहुत कुछ लिखा था ...पर किसे पता था इस अच्छे शहर पर धर्मान्धता का कलंक लग जाएगा. इसे सूचनात्मक सन्दर्भ में ही लें ...काव्यात्मक रूप कभी दे सकूंगा ..सोच रहा हूँ. आपकी सलाह मेरे लिए अनमोल है   सादर!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 23, 2015 at 1:45am

भाई जवाहरलालजी, आपसे सूचना मिल गयी. बड़ा दुख हुआ कि जमशेदपुर की हवा में धर्म की गलत परिभाषा एक बार फिर हावी हुई है. सारा शहर अशांत है. मन बहुत दुखी है. ईश्वर शीघ्र सद्बुद्धि दे कर लोगों को सही आचरण केलिए प्रेरित करे. इस सूचना केलिए शुक्रिया, भाईजी.

जहाँ तक इस प्रस्तुति का सवाल है, तो आप मुझसे और ओबीओ पर हो रहे साहित्यिक चेतना के अंतरगत साहित्य संवर्धन हेतु हो रहे प्रयासों से परिचित हैं. क्या इस सूचनात्मक प्रस्तुति में कविता नहीं होनी चाहिये थी ?

इस प्रस्तुति पर मैं आपके प्रशंसक-सदस्यों का बुरा नहीं मानता. क्योंकि कुछ सदस्य सीधे अन्यान्य सोशल साइट से आये हैं और उसी तर्ज़ पर बिना शिल्प और कथ्य की परख किये ’वाह-वाह’ करते हुए जजमेण्टल हो जाते हैं. इन सदस्यों को अभी बहुत कुछ जानना है, बशर्ते इनके पास शिल्प-विधा, तथ्य-कथ्य और कविताई के मर्म को सीखने-समझने केलिए आवश्यक दीर्घजीवी धैर्य हो. शिल्प का प्रारूप धरे भावनाओं के मुलम्मे में साझा हुए कथ्य में यदि घटियापन हो तो उसे भी ताड़ लेना सटीक साहित्यिक परख है. यह ऐसे सदस्यों को शिद्दत से अभी समझना है. मुझे यह भी भान है, कि आप इस मंच के पुराने सदस्य हैं, और इस मंच पर रचना-प्रयास हेतु अपनायी गयी गंभीरता को समझते हैं.

जवाहर भाई, आपने काश अपनी भावनाओं को सार्थक अतुकान्त, वैचारिक कविता का ही रूप दिया होता. आपने इस प्रस्तुति हेतु जिस शिल्प को अपनाया है वह क्या है ? आप अच्छे दोहा छन्द रचने लगे हैं, इसी छन्द में शहर की दशा को सस्वर किया होता. आपकी भावनाएँ प्राण पा जातीं, जिनके बारे में अपनी एक टिप्पणी में आपने कहा भी है कि आप बहुत दुखी हैं. आप समझ रहे हैं न, आदरणीय जवाहर भाई, मैं क्या कह रहा हूँ ?

अखबार की सूचनाओं को साहित्य के दरवाज़े पर कृपया उसी रूप में ले आया कीजिये जिस रूप में साहित्य चाहता और स्वीकारता है.
शुभेच्छाएँ

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on July 22, 2015 at 11:10pm

धर्म अधर्म के बीच 

कुछ लोग फैले हैं 

मन से तों  काले 

तन  से  उजले  हैं..कुशवाहा 

बिलकुल सही कहा है आपने वे ही लोग पहले हवा देते हैं, फिर आग बुझाते नजर आते हैं...वैसे अभिस्थिति नियंत्रण में है.

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on July 22, 2015 at 11:09pm

आदरणीय राहुल दांगी साहब, हार्दिक आभार!

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on July 22, 2015 at 11:08pm

आदरणीय महर्षि त्रिपाठी साहब, ईश्वर से प्रार्थना है कि शांति जल्द जल्द बहाल हो ... बच्चों, विद्यार्थियों, मिहनतकश मजदूरों का नुक्सान हो रहा है प्रशासन पूरी मुस्तैदी के साथ स्थिति को नियंत्रण में रख पा रहा है  

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on July 22, 2015 at 11:03pm

आदरणीय कुशवाहा जी, सादर अभिवादन! बहुत ही दुखी मन से आज कुछ पंक्तियाँ लिख पाया ... बहुत नाज था मुझे अपने शहर पर! अभी तो शांति है ...पहरा बहुत गहरा है, आम लोग उदास हैं, दरवाजे बंद हैं.... खिडकियों और बालकोनियों से झांकते लोग हैं ...  अजीब स्थिति है दहशत और शांति का मिश्रण! काश कि स्थिति को बिगड़ने से पहले सम्हाल लिया जाता ... नुक्सान तो आमजन का ही होता है हर दहशत में ...'उनके' साथ तो आर्म्ड फोर्स हमेशा रहती है  ....

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 22, 2015 at 10:40pm

धर्म अधर्म के बीच 

कुछ लोग फैले हैं 

मन से तों  काले 

तन  से  उजले  हैं..कुशवाहा 

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई आपको।"
6 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय रिचा यादव जी, तरही मिसरे पर अच्छा प्रयास है। बधाई स्वीकार करें।"
10 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, तरही मिसरे पर अति सुंदर ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें।"
14 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"ग़ज़ल - 2122 1122 1122 22 काम मुश्किल है जवानी की कहानी लिखनाइस बुढ़ापे में मुलाकात सुहानी लिखना-पी…"
21 minutes ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"इतना काफ़ी भी नहीं सिर्फ़ कहानी लिखना तुम तो किरदार सभी के भी म'आनी लिखना लिख रहे जो हो तो हर…"
1 hour ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"२१२२ ११२२ ११२२ २२ बे-म'आनी को कुशलता से म'आनी लिखना तुमको आता है कहानी से कहानी…"
2 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मैं इस मंच पर मौजूद सभी गुनीजनों से गुज़ारिश करता हूँ कि ग़ज़ल के उस्ताद आदरणीय समर गुरु जी को सह…"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"2122 1122 1122 22 इतनी मुश्किल भी नहीं सच्ची कहानी लिखनाएक राजा की मुहब्बत में है रानी लिखना…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"भूलता ही नहीं वो मेरी कहानी लिखना।  मेरे हिस्से में कोई पीर पुरानी लिखना। वो तो गाथा भी लिखें…"
12 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

"मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२*****पसरने न दो इस खड़ी बेबसी कोसहज मार देगी हँसी जिन्दगी को।।*नया दौर जिसमें नया ही…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर

1222-1222-1222-1222जो आई शब, जरा सी देर को ही क्या गया सूरज।अंधेरे भी मुनादी कर रहें घबरा गया…See More
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service