For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गज़ल - जलते नयन बेतहाशा - इमरान

221 221 22

ठंडी पवन बेतहाशा,
जलते नयन बेतहाशा।

धरती पराई, सताये,
यादे वतन बेतहाशा।

ज़िन्दा अगर हो तो सुन्न क्यों,
ख़ूने बदन बेतहाशा।

मैला बदन कैसे पहनूँ,
उजला क़फन बेतहाशा।

मौसम चुनावी, मिलेंगे,
झूठे वचन बेतहाशा।

नेता न छोड़ेंगे करने,
भारी गबन बेतहाशा।

माज़ी जिगर का बना है,
कोई वज़न बेतहाशा।

मिलने लगे हैं कुछ अपने,
डाले शिकन बेतहाशा।

देखो न अंधा बना दे,
सिक्कों की खन बेतहाशा।

आकर न दें वो गवाही,
भेजे समन बेतहाशा।

उबरे हर इक बार हमने,
झेले पतन बेतहाशा।

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

Views: 891

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 1, 2014 at 1:05am

वाह ! बढिया .. दाद कुबूल करें.

नेता न छोड़ेंगे करने,.... . क्या करना सही होगा !
भारी गबन बेतहाशा।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 15, 2014 at 2:22pm

जी इमरान भाई जी मैं अपनी गलती कबूलती हूँ. 

Comment by इमरान खान on April 15, 2014 at 2:03pm
/देखो न अंधा बना दें ,धन
की चमक बेतहाशा भी कर सकते है/

नहीं कर सकते राजेश कुमारी साहिबा, ये इस्लाह करने से पहले कितना अच्छा होता अगर आप रदीफ और क़ाफिया को नज़र में रखती।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 11, 2014 at 10:13am

वाह इमरान खान जी अब ये दोनों शेर बेहतरीन हुए ----देखो न अंधा बना दें ,धन की चमक बेतहाशा भी कर सकते हैं 

"ज़िन्दा हो फिर सर्द क्यों है,
ख़ूने बदन बेतहाशा।"  ---बहुत उम्दा 

Comment by इमरान खान on April 11, 2014 at 9:51am
मोहतरमान @राजेश कुमारी साहिबा, गिरिराज साहब व मुकेश कुमार साहब, 'सुन्न' और 'खन' दोनों ही अल्फाज़ हटा रहा हूँ

"ज़िन्दा हो फिर सर्द क्यों है,
ख़ूने बदन बेतहाशा।"

"देखो न अंधा बना दे,
धन की लगन बेतहाशा।"

आपकी बहुमूल्य टिप्पणियों का आभार।
Comment by इमरान खान on April 11, 2014 at 9:01am
डा. प्राची साहिबा मेरी कोशिश आपको पसंद आई लिखना सार्थक हुआ। सहयोग बनाये रखियेगा।
Comment by इमरान खान on April 11, 2014 at 8:59am
मुकेश साहब गज़ल आपको अच्छी लगी बेहद खुशी हो रही है। 'खन' वाले शेर को बदल रहा हूँ
Comment by इमरान खान on April 11, 2014 at 8:56am
शुक्रिया भुवन साहब

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 11, 2014 at 7:56am

इस छोटी पर टिपिकल बहर को निभाना मुश्किल रहा होगा...पर आपने बाखूबी निभाया है..

सभी अशआर प्रभावी हुए हैं ..ये दो ख़ास पसंद आये 

धरती पराई, सताये,
यादे वतन बेतहाशा।

देखो न अंधा बना दे,
सिक्कों की खन बेतहाशा।

हार्दिक बधाई 

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on April 10, 2014 at 10:59pm

आदरणीय इमरान साहेब

बहुत सुंदर ग़ज़ल कही है आपने.
बस ये शेर..सिर्फ़ एक शब्द की वजह से अपना पूरा प्रभाव नहीं डाल पाया है..हालाँकि आपने स्पष्ट कर दिया है. बहुत मुबारकबाद

देखो न अंधा बना दे,
सिक्कों की खन बेतहाशा।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" पर्यावरण की इस प्रकट विभीषिका के रूप और मनुष्यों की स्वार्थ परक नजरंदाजी पर बहुत महीन अशआर…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"दोहा सप्तक में लिखा, त्रस्त प्रकृति का हाल वाह- वाह 'कल्याण' जी, अद्भुत किया…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीया प्राची दीदी जी, रचना के मर्म तक पहुंचकर उसे अनुमोदित करने के लिए आपका हार्दिक आभार। बहुत…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी इस प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। सादर"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका मेरे प्रयास को मान देने के लिए। सादर"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"वाह एक से बढ़कर एक बोनस शेर। वाह।"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"छंद प्रवाह के लिए बहुत बढ़िया सुझाव।"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"मानव के अत्यधिक उपभोगवादी रवैये के चलते संसाधनों के बेहिसाब दोहन ने जलवायु असंतुलन की भीषण स्थिति…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" जलवायु असंतुलन के दोषी हम सभी हैं... बढ़ते सीओटू लेवल, ओजोन परत में छेद, जंगलों का कटान,…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आग लगी है व्योम में, कहते कवि 'कल्याण' चहुँ दिशि बस अंगार हैं, किस विधि पाएं त्राण,किस…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"भाई लक्षमण जी एक अरसे बाद आपकी रचना पर आना हुआ और मन मुग्ध हो गया पर्यावरण के क्षरण पर…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"अभिवादन सादर।"
4 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service