For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ठिठुरते हुए तारे
शांत माहौल
आँख मिचौली खेलता
बादलों के पीछे छिपा चाँद
जिसे निहारते हुए
एकाएक खुशबु लिए
एक हवा का झोंका
तुम्हारे स्पर्श सा
छू गया मुझे
पूस की वो रात

लेटते हुए
कभी इस करवट
कभी उस करवट

ह्रदय में हुआ कंपन
आँखों से छलका प्रेम
भिगो गया
मेरा तन बदन
मेरा मन
तन्हा गुजारते हुए

पूस की वो रात

तुम्हारी छूअन से
पूस की वो रात
आत्मीय हो उठती
खिल उठती मैं
खुल जाते
सब ह्रदय के द्वार

दिल
चहकता
बहकता
मचलता
पूस की वो रात
__________________________
वो छूअन अब कभी नहीं होगी महसूस

.................................................

           मौलिक एवं संशोधित .

Views: 481

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कल्पना रामानी on February 11, 2014 at 10:36am

मन के सघन भावों की अनुपम अभिव्यक्ति के लिए , साथ ही महीने की  सक्रिय सदस्य चुनी जाने के लिए  हार्दिक बधाई और शुभ कामनाएँ स्वीकार कीजिये सरिता जी/सादर  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 7, 2014 at 11:24am

मन में बसी यादों को प्रकृति के साथ जीना...बहुत गहराई से प्रस्तुत हुआ है 

'पूस की उस रात' लिखा जाना ही मेरा भी सुझाव है.. तदनुरूप दुसरे बंद की अंतिम पंक्ति में कुछ व्याकरणिक परिवर्तन के साथ.

शुभकामनाएं 

Comment by vijay nikore on February 6, 2014 at 11:02am

सुन्दर रचना के लिए बधाई, आदरणीया ।

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 6, 2014 at 1:05am

स्मृतियाँ जब अभिलाषाओं के सापेक्ष हो जायें तो प्रकृति अपनी सर्वांग उपस्थिति के बावज़ूद असह्य लगती है.

एक सार्थक रचना.

वैसे पहले बन्द में पूस की वो रात  में व्याकरण के अनुसार वो की जह उस होना चाहिये. यही आखिरी बन्द में भी होगा. 

या आप पूस की वो रात  को कविता के बन्दों के साथ न लिख कर अलग कर दें, एक गैप के साथ.

शुभेच्छाएँ

Comment by Sarita Bhatia on February 4, 2014 at 5:23pm

आदरणीया मोहिनी जी हार्दिक आभार 

Comment by Sarita Bhatia on February 4, 2014 at 5:22pm

आदरणीय गिरिराज जी हार्दिक आभार 

Comment by mohinichordia on February 3, 2014 at 5:34pm

पूस की तन्हाई भरी रात ..मार्मिक अभिव्यक्ति .. आ.सरिता जी भाटिया | महीने का सक्रीय सदस्य चुने जाने पर आपको  हार्दिक बधाई |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 2, 2014 at 8:13pm

आदरणीया सरिता जी , सुन्दर मार्मिक रचना के लिये आपको बहुत बधाइयाँ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
28 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
29 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
52 minutes ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"गजल**किसी दीप का मन अगर हम गुनेंगेअँधेरों    को   हरने  उजाला …"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई भिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर उत्तम रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"दीपोत्सव क्या निश्चित है हार सदा निर्बोध तमस की? दीप जलाकर जीत ज्ञान की हो जाएगी? क्या इतने भर से…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"धन्यवाद आदरणीय "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"ओबीओ लाइव महा उत्सव अंक 179 में स्वागत है।"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"स्वागतम"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service