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ग़ज़ल : सच है यही कि स्वर्ग न जाती हैं सीढ़ियाँ

बह्र : २२१२ १२११ २२१२ १२

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सच है यही कि स्वर्ग न जाती हैं सीढ़ियाँ

मैं उम्र भर चढ़ा हूँ पर बाकी हैं सीढ़ियाँ

 

तन के चढ़ो तो पल में गिराती हैं सीढ़ियाँ

झुक लो जरा तो सर पे बिठाती हैं सीढ़ियाँ

 

चढ़ते समय जो सिर्फ़ गगन देखता रहे

जल्दी उसे जमीन पे लाती हैं सीढ़ियाँ

 

मत भूलिये इन्हें भले आदत हो लिफ़्ट की

लगने पे आग जान बचाती हैं सीढ़ियाँ

 

रहना अगर है होश में चढ़ना सँभाल के

हर पग पे एक पैग पिलाती हैं सीढ़ियाँ

-------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 7, 2014 at 10:07pm

बहुत बहुत शुक्रिया Sanjay Mishra 'Habib' जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 7, 2014 at 10:03pm

तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ  सौरभ जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 7, 2014 at 9:30pm

बहुत बहुत शुक्रिया Abhinav Arun जी

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on December 16, 2013 at 4:57pm

वाह!! बहुत खूबसूरत ग़ज़ल... आ धर्मेन्द्र भाई जी सादर बधाई स्वीकारें....


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 14, 2013 at 2:26am

सीढ़ियों को मरकज़ बना कर एक अच्छा प्रयोग हुआ है.

हार्दिक बधाई, आदरणीय धर्मेन्द्रजी.

Comment by Abhinav Arun on December 8, 2013 at 5:40am

तन के चढ़ो तो पल में गिराती हैं सीढ़ियाँ

झुक लो जरा तो सर पे बिठाती हैं सीढ़ियाँ



चढ़ते समय जो सिर्फ़ गगन देखता रहे

जल्दी उसे जमीन पे लाती हैं सीढ़ियाँ

.................वाह वाह आ. धर्मेन्द्र जी उम्दा ग़ज़ल ..सार्थक रचना सीख देती रचना के लिए ढेरों मुबारकबाद !!

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 7, 2013 at 11:30pm

बहुत बहुत धन्यवाद savitamishra जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 7, 2013 at 11:29pm

बहुत बहुत शुक्रिया अरुन शर्मा 'अनन्त' जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 7, 2013 at 11:29pm

बहुत बहुत धन्यवाद Meena Pathak जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 7, 2013 at 11:29pm

बहुत बहुत शुक्रिया Nilesh Shevgaonkar जी।

अरुज के अनुसार पर को प’ पढ़ने की छूट होती है। ऐसा बहुत सारे शायर पहले से करते आ रहे हैं।

कृपया ध्यान दे...

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