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ग़ज़ल - रुक जाते हैं चलते रेले - पूनम शुक्ला

2222. 2222

हाँ ऊँचा अंबर होता है
पर धरती पर घर होता है

तुम हो आगे हम हैं पीछे
ऐसा तो अक्सर होता है

इक लय में गाते जब दोनों
हर इक आखर तर होता है

होती खाली तू तू मैं मैं
वो भी कोई घर होता है

बन जाता है जो रेतीला
वो भी तो पत्थर होता है

रुक जाते हैं चलते रेले
देखा तेरा दर होता है

तू ही जाने किस गरदन पर
जाने किसका सर होता है

पूनम शुक्ला
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 777

Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 16, 2013 at 11:46pm

पूनमजी, आपकी ग़ज़ल के लिए हार्दिक धन्यवाद.  ग़ज़ल पर देर से आ पा रहा हूँ. लेकिन मन खुश हो गया.

आपने फेलुन फेलुन.. फा का वज़्न लिया है. परिपाटियों के अनुसार ग़ाफ़ की संख्या विषम यानि फूट की रखी जाती है.

बधाई

Comment by वीनस केसरी on October 12, 2013 at 2:05am

बहुत शानदार ग़ज़ल कही है
ढेरो दाद

हाँ ऊँचा अंबर होता है
पर धरती पर घर होता है .... अच्छा मतला हुआ है

बन जाता है जो रेतीला
वो भी तो पत्थर होता है........ बहुत कुछ कहता हुआ शेर है ,,, बहुत खूब 

रुक जाते हैं चलते रेले
देखा तेरा दर होता है .......... बहुत अच्छे से निभाया

तू ही जाने किस गरदन पर
जाने किसका सर होता है ........... लाजवाब ,,, कमाल का शेर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 9, 2013 at 2:47pm

इक लय में गाते जब दोनों
हर इक आखर तर होता है..............बहुत सुन्दर शेर 

हार्दिक शुभकामनाएं 

Comment by Saarthi Baidyanath on October 9, 2013 at 8:25am

आदरणीया पूनम जी ... कुछ मिसरे सचमुच आंदोलित कर रहे हैं ..! बढ़िया ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद :)

Comment by vandana on October 9, 2013 at 6:55am

आदरणीया पूनम जी हार्दिक बधाई इतनी सुन्दर प्रस्तुति के लिए 

Comment by Sushil.Joshi on October 9, 2013 at 5:12am

इस सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाई हो आदरणीया पूनम जी.....

Comment by कल्पना रामानी on October 8, 2013 at 11:06pm

पूनम जी, सुंदर भावाभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई

Comment by annapurna bajpai on October 8, 2013 at 6:30pm

अ0 पूनम शुक्ल जी खूबसूरत गजल हुई है बहुत बधाई आपको । 

Comment by नादिर ख़ान on October 8, 2013 at 5:54pm

हाँ ऊँचा अंबर होता है
पर धरती पर घर होता है

तुम हो आगे हम हैं पीछे
ऐसा तो अक्सर होता है

होती खाली तू तू मैं मैं
वो भी कोई घर होता है

पूनम जी, अच्छी गज़ल के लिए बहुत बधायी .....

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on October 8, 2013 at 5:41pm

छॊटी बह्र में कमाल की गज़ल कही है,,,,बधाई

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