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दुखियारी आँख - एक कुंडली छंद

मोहि दुखियारी आँख को,सुक्ख मिलत है नाहि  

देखत तुम बनते नहीं,बिन देखे अकुलाहि 
बिन देखे अकुलाहि, सजन को कहाँ निहारै  
होवेंगी कब चार , मिलन की राह बुहारै 
कह सागर कविराय,हुयी है अँखियाँ भारी, 
कबहुं मिलोगे मोय,पूछहि मोहि दुखियारी 
.
आशीष ( सागर सुमन ) 
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 29, 2013 at 9:29am

सुन्दर भाव लिए छंद रचना के लिए बधाई श्री आशीष जी 

Comment by Neeraj Neer on September 28, 2013 at 8:48am

सुन्दर कुण्डलियाँ बधाई 

Comment by ram shiromani pathak on September 27, 2013 at 4:53pm

सुन्दर प्रस्तुति भाई जी  बधाई आपको //सादर  

Comment by Saarthi Baidyanath on September 27, 2013 at 12:13pm

भाव-प्रवण से ओतप्रोत एक सुन्दर विरह रचना ...! नमन व बधाई :)

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 27, 2013 at 11:56am

आशीष भाई कुण्डलिया के भाव बहुत ही सुकोमल है शिल्प , कसावट और प्रवाह पर तनिक और ध्यान देने की आवश्यकता है, आनंद आते आते रह गया भाई जी, खैर इस प्रयास पर बधाई स्वीकारें


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Comment by गिरिराज भंडारी on September 26, 2013 at 9:20pm

आदरणीय आषीश भाई , सुन्दर कुंडलिया रची है आपने !! हार्दिक बधाई !!

Comment by Abhinav Arun on September 26, 2013 at 5:22pm

सुन्दर सुखद सुखकर रचना हार्दिक बधाई १!

Comment by रविकर on September 26, 2013 at 5:10pm

चक्षु होंय कब चार -

मोहि पूछहि दुखियारी ||

गेयता के लिए उपाय करें आदरणीय-

शुभकामनायें
सुन्दर भाव

Comment by annapurna bajpai on September 26, 2013 at 12:54pm

वाह !! आ0 सुंदर कुंडली छंद , बधाई आपको । 

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