For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ये आह पानी ,वो वाह पानी ,
कर गया आखिर तबाह पानी !

कभी बादलों से रही शिकायत ,
जिधर डालिए अब निगाह पानी !

दिखे ऐसे मंजर,उतराती लाशें
उठे दर्द,चीखें,कराह पानी !

जहां ज़िंदगी मांगने को गए थे,
कर के गया सब सियाह पानी !

रहम करनेवाला खुद ही परीशां
माँगी है तुझसे पनाह पानी !

____________प्रो.विश्वम्भर शुक्ल ,लखनऊ

(मौलिक और अप्रकाशित )

Views: 490

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Savitri Rathore on June 24, 2013 at 7:10pm

समसामयिक विषय पर सराहनीय प्रयास .......बधाई !

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 21, 2013 at 9:16pm

जहां ज़िंदगी मांगने को गए थे,
कर के गया सब सियाह पानी !

रहम करनेवाला खुद ही परीशां
माँगी है तुझसे पनाह पानी !

बहुत ही प्रभावी पंक्तियाँ !

Comment by Kundan Kumar Singh on June 21, 2013 at 4:12pm

बहुत ही अच्छा प्रयास। एक समसामायिक विषय पर।

Comment by बृजेश नीरज on June 21, 2013 at 4:09pm

आदरणीय इस रचना पर मेरी बधाई स्वीकारें!

Comment by Shyam Narain Verma on June 21, 2013 at 1:31pm
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ...............
Comment by aman kumar on June 21, 2013 at 12:10pm

 हिमाचल और उत्तराखंड मे हुई  पानी से हुई तबाही , से आज पूरा देश स्तब्ध है \

यदि कविता मे कुछ विस्तार होता तो ..........

अति सुंदर !

Comment by बसंत नेमा on June 21, 2013 at 10:30am

हकिकत को बयाँ करती बहुत सुन्दर रचना /... बधाई 

Comment by coontee mukerji on June 21, 2013 at 10:25am

जहां ज़िंदगी मांगने को गए थे,
कर के गया सब सियाह पानी !

रहम करनेवाला खुद ही परीशां
माँगी है तुझसे पनाह पानी !............इससे बड़ी विडम्बना और क्या हो सकती है.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 21, 2013 at 9:44am

आ0 विश्वम्भर सर जी, बहुत ही सम-सामयिक गजल हुई।
‘दिखे ऐसे मंजर,उतराती लाशें
उठे दर्दएचीखेंएकराह पानी !
जहां ज़िंदगी मांगने को गए थे,
कर के गया सब सियाह पानी !
रहम करनेवाला खुद ही परीशां
माँगी है तुझसे पनाह पानी !‘... असहनीय पीड़ा का सजीव चित्रण। क्या कहूं? आपके मर्म को कोटिशः नमन। सादर,

Comment by D P Mathur on June 21, 2013 at 7:09am

जहां जिंदगी मांगने को गए थे,
कर के गया सब सियाह पानी !

आदरणीय शुक्ल सर ,बिल्कुल सत्य है वो ना हो तो कष्ट,
और ज्यादा हो तो भी कष्ट ,कैसी त्रासदी है,
जीव कितना असहाय है !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
15 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service