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अब भी कहोगें तुम मुझे सती ????

झुंझुनू यात्रा के दौरान
घुमाया गया मुझे
तथाकथित "रानी सती" के मंदिर में.
मंदिर में प्रवेश करते ही दरवाजे पर लिखा था ....
"हम सती प्रथा का विरोध करते है"
पर अंदर जाकर जिस तरह श्रदालुओं का दिखा रेला ,
और बाहर भी लगा था भक्तों का मेला ,
मेरे मन में सवाल उठा कि-------
जब दुनिया से गया होगा इस महिला का पति,
तो क्या अपनी इच्छा से हुई होगी यह सती ?
वहां तो कोई जवाब नहीं मिला पर रात को सपने में आई वो महिला .
उसे देखकर पहले तो मैं डरा फिर मेरा कलेजा हिला .
वो बोली डरो मत तुम वो पहले व्यक्ति हो!!
जो मन में मेरे सती होने या न होने का सवाल लेकर आये हो.
अगर तुम्हें जाए यह बात पच ---
तो बताती हूँ तुम्हें मेरी मौत का सच ---
जिस दिन इस दुनिया से रुखसत हुआ था मेरा पति .
मुझे दुःख तो था पर मैं नहीं होना चाहती थी सती.
मुझे बेहोशी की हालत में गया था सजाया .
मुझे जब पति की चिता पर गया चढ़ाया !
तो मेरी चीखों को दबाने के लिए नगाड़ा बजाया !
लोग जयकारे लगाते और मैं थी चीखती !!
क्या अब भी कहोगें तुम मुझे सती ????????

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Comment by Naval Kishor Soni on August 30, 2012 at 11:46am
विन्ध्येश्वरी प्रसाद जी
बधाई हेतु धन्यवाद! हम अपनी तरफ से इस बात का प्रयास करते हैं कि काव्य का कला पक्ष भी उतना ही उत्तम हो जितना कि भाव पक्ष.
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on August 29, 2012 at 6:46pm
आदरणीय नवल किशोर जी! सती प्रथा को पृष्टभूमि में रखकर लिखी रचना मर्माहत करती है।दो रुपों में-
1-स्त्री की वेदना को उजागर करने के कारण
2-कविता कथा जैसी लगती।
यह मेरा मानना है गुरुजनों की क्या राय है?देखते हैं।
फिर भी उत्तम भावभूमि की संरचना के लिए बधाई स्वीकार करें।
सादर

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