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हाइकु मुक्तिका: जग माटी का... संजीव 'सलिल'

हाइकु मुक्तिका:

संजीव 'सलिल'
*
*
जग माटी का / एक खिलौना, फेंका / बिखरा-खोया.

फल सबने / चाहे पापों को नहीं / किसी ने ढोया.
*
गठरी लादे / संबंधों-अनुबंधों / की, थक-हारा.

मैं ढोता, चुप / रहा- किसी ने नहीं / मुझे क्यों ढोया?
*
करें भरोसा / किस पर कितना, / कौन बताये?

लूटे कलियाँ / बेरहमी से माली / भंवरा रोया..
*
राह किसी की / कहाँ देखता वक्त / नहीं रुकता.

साथ उसी का / देता चलता सदा / नहीं जो सोया.
*
दोष विधाता / को मत देना गर / न जीत पाओ.

मिलता वही / 'सलिल' उसको जो / जिसने बोया.
*
**************
प्रस्तुतकर्ता दिव्य नर्मदा divya narmada पर ७:३७ पूर्वाह्न 0 टिप्पणियाँ
लेबल: acharya sanjiv 'salil', contemporary hindi poetry, haiku, india, jabalpur, muktika, samyik hindi kavita

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Comment by आशीष यादव on October 15, 2010 at 4:44am
Aapne muktika ko achchhe dhang se samjhaya. Dhanyawad.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 11, 2010 at 7:05pm
बहुत बहुत धन्यवाद आचार्य जी, मुझे यकीन है कि मेरे साथ साथ अन्य साथियों को भी आप के उत्तर से ज्ञान वर्धन होगा |
Comment by sanjiv verma 'salil' on October 11, 2010 at 6:46pm
मुक्तिका क्या है?

- मुक्तिका वह पद्य रचना है जिसका-
१. प्रथम, द्वितीय तथा उसके बाद हर सम या दूसरा पद पदांत तथा तुकांत युक्त होता है.
२. हर पद का पदभार हिंदी मात्रा गणना के अनुसार समान होता है. यह मात्रिक छन्द में निबद्ध पद्य रचना है.
३. मुक्तिका का कोई एक या कुछ निश्चित छंद नहीं हैं. इसे जिस छंद में रचा जाता है उसके शैल्पिक नियमों का पालन किया जाता है.
४. इस हाइकु मुक्तिका में हाइकु के सामान्यतः प्रचलित ५-७-५ मात्राओं के शिल्प का पालन किया गया है. आज ही ओ बी ओ पर एक जनक छंदी मुक्तिका प्रस्तुत की है.
५. मुक्तिका का प्रधान लक्षण यह है कि उसकी हर द्विपदी अलग-भाव-भूमि या विषय से सम्बद्ध होती है अर्थात अपने आपमें मुक्त होती है. एक द्विपदी का अन्य द्विपदीयों से सामान्यतः कोई सम्बन्ध नहीं होता.
६. किसी विषय विशेष पर केन्द्रित मुक्तिका की द्विपदियाँ केन्द्रीय विषय के आस-पास होने पर भी आपस में असम्बद्ध होती हैं.
७. मुक्तिका को अनुगीत, तेवरी, गीतिका, हिन्दी ग़ज़ल आदि भी कहा गया है.
गीतिका हिन्दी का एक छंद विशेष है अतः, गीत के निकट होने पर भी इसे गीतिका कहना उचित नहीं है.
तेवरी शोषण और विद्रूपताओं के विरोध में विद्रोह और परिवर्तन की भाव -भूमि पर रची जाती है. ग़ज़ल का शिल्प होने पर भी तेवरी अपनी स्वतंत्र पहचान स्थापित करती जा रही है.
हिन्दी ग़ज़ल के विविध रूपों में से एक मुक्तिका है किन्तु यह उर्दू ग़ज़ल की तरह चंद लय-खंडों (बहरों) तक सीमित नहीं है.
इसमें मात्रा या शब्द गिराने अथवा लघु को गुरु या गुरु को लघु पढने की छूट नहीं होती.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 10, 2010 at 8:18pm
आचार्य जी, बहुत ही बढ़िया हाइकु आपने लिखा है, संपादक जी और आप की वार्ता पढ़ एक बात मेरे मन मे कौधा कि ....... आखिर मुक्तिका है क्या ?
अभी तक मै यह समझ रहा था कि .. जो रचना नियमो के बंधन से मुक्त हो वह मुक्तिका,
यदि यह सही है तो ........ जब हाइकु का मात्रा नियम ५-७-५ का पालन किया गया है तो वह मुक्तिका कैसे ?
यदि मैं जो समझता हूँ मुक्तिका के बारे मे वह सही नहीं है तो ..... कृपया बताये कि मुक्तिका क्या है ? मैं यह सवाल केवल अपने जानकारी मे बढ़ोतरी के लिये पूछ रहा हूँ |
Comment by sanjiv verma 'salil' on October 10, 2010 at 8:09pm
प्रभाकर जी!
धन्यवाद.
प्रायः पूछा जाता है कि मैं मुक्तिका को गज़ल क्यों नहीं कहता? इसका उत्तर यह रचना है. यह मुक्तिका तो है, हाइकु के रचना शिल्प पर है इसलिए हाइकु मुक्तिका कहने पर किसी को आपत्ति न होगी किन्तु इसे हाइकु गजल कहा जाना स्वीकार्य होगा क्या? इसी तरह दोहा मुक्तिका, सोरठा मुक्तिका, ककुप मुक्तिका, जनक छंदी मुक्तिका आदि की रचना मेरी कलम से हुई है.

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on October 10, 2010 at 7:49pm
आचार्य जी, मुक्तिका और वह भी हाईकु की ज़मीन पर ? बेहतरीन प्रयास, बधाई स्वीकार कीजिये !

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