For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गहरा है ये सागर बहुत साहिल ही नही है

ये दिल मेरा अब इश्क के काबिल ही नहीं है
बिखरा है जो अब टूट के वो दिल ही नहीं है

हम जीते थे जिस शान से यारों के साथ में
वो छूटे हैं पीछे सभी महफ़िल ही नहीं है

गम हैं मेरा जो जान से मारेगा  एक दिन
जो गम को डाले मार वो कातिल ही नहीं है

नादानी थी या भूल थी आशिक मैं बन गया
क्या आँखों को उसकी पढ़ें कामिल ही नहीं है

मैं डूबा था इस इश्क में पाने को कुछ सकूँ
गहरा है ये सागर बहुत साहिल ही नही है

है कैसा ये निजाम दीप लुट रहा हर सख्स
इतना मेरा कानून तो ग़ाफिल ही नहीं है !!!!!!

संदीप पटेल "दीप"

Views: 660

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Bishwajit yadav on June 3, 2012 at 10:54pm
ये दिल मेरा अब इश्क के काबिल ही नहीं है
बिखरा है जो अब टूट के वो दिल ही नहीं है

वाह वाह क्या बात है बहुत सुन्दर संदपी जी क्या बात है

मुझे उम्मीद है कि आप और भी नई रचनाओ को पोस्ट करेगे और थोडा शब्दो पर भी ध्यान दे
जय हो
Comment by chandan rai on June 3, 2012 at 4:32pm
सदीप जी
नादानी थी या भूल थी आशिक मैं बन गया
क्या आँखों को उसकी पढ़ें कामिल ही नहीं है

खुबसूरत ग़ज़ल , बधाई हो
Comment by Rekha Joshi on June 2, 2012 at 9:11pm

सदीप जी ,बहुत बढ़िया रचना ,लिखते रहे ,बधाई \

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on June 2, 2012 at 8:20pm

जय गुरुदेव
सादर नमन आपको आदरणीय Saurabh Pandey सर जी
आपकी प्रतिक्रया पा के मैं धन्य हो गया,  एक विश्वास जागा कि हम भी कुछ लिख सकते हैं
इस उत्साहवर्धन के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया और सादर आभार
ये स्नेह और आशीर्वाद यूँ ही बनाये रखिये


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 2, 2012 at 7:48pm

आपने अच्छी कोशिश की है, भाईजी.  इस ग़ज़ल पर बधाई कुबूल करें.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on June 2, 2012 at 6:39pm

आदरणीय Ganesh Jee "Bagi" सर जी सादर नमन
आपको ग़ज़ल पसंद आई इसका मतलब ये ग़ज़ल ही है
इसमें जो कमियाँ हों उन्हें भी उजागर करने की कृपा करें ताकि अगली बार और अच्छा प्रयास किया जा सके
आपका बहुत बहुत आभारी हूँ
अपने ये स्नेह बनाये रखिये
सादर नमन

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on June 2, 2012 at 6:37pm


आदरणीय सम्पादक  महोदय जी सादर नमन
आपका आदेश सर आँखों पर
अब से यही कोशिश रहेगी
आपका आभारी


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 2, 2012 at 5:51pm

//गम हैं मेरा जो जान से मारेगा  एक दिन
जो गम को डाले मार वो कातिल ही नहीं है//

सभी शेर अच्छे लगे, ग़ज़ल खुबसूरत है, बधाई हो संदीप जी |

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 2, 2012 at 5:14pm

है कैसा ये निजाम दीप लुट रहा हर सख्स 
इतना मेरा कानून तो ग़ाफिल ही नहीं है 

इसी गफलत में तो जीता रहा ता उम्र ऐ दोस्त 

न आई हया उनको देखा उनकी आँख में पानी ही नहीं है 

था जोश बहुत उनकी बाजुओं में लड़ने का तुफानो से 

आया वक्त जब हिसाब का देखा उनमे जवानी ही नहीं है 

बधाई  .

Comment by Admin on June 2, 2012 at 10:56am

संदीप जी, प्रयास करें कि टिप्पणी देवनागरी (हिंदी) में हो , देवनागरी लेखन हेतु टूल लिंक ओ बी ओ में दिया गया है, यदि रोमन लिखना ही पड़े तो Running लिखे अर्थात कैपिटल में ना लिखे । 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service