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कालबाह्य हो गयी अचानक सिर से वंचित चोटी है|
अब तो सारी ही रचनाएं कंप्यूटर पर होती है||
मृतिका पात्रों का सोंधापन,
स्नेहपूर्ण परसन,प्रक्षालन|
मधुमय मंगल गीतों के संग-
मिष्ट अन्न,दुर्लभ आस्वादन|
चन्दन वासित,कंचन काया सुबक,सुबक कर रोती है|
अब तो सारी ही रचनाएं कंप्यूटर पर होती है||
नहीं वृषभ जिनके कन्धों पर,
जुएं जुते रहते थे सुन्दर|
इन्ना,इन्ना,बर्रा,बर्रा,
ना बाबा,ना बाबा का स्वर|
प्राणाधिक प्रियतम यंत्रों ने,सारी धरती जोती है|
अब तो सारी ही रचनाएं कंप्यूटर पर होती है||
दूरभाष की नीरस बातें,
मिटीं दूरियां रिश्ते,नाते,
जिसको पढ़ प्रेमाश्रु छलकते,
रोमांचित हो वदन लजाते|
मसि कागद की परम्पराएँ,अपना गौरव खोती हैं|
अब तो सारी ही रचनाएं कंप्यूटर पर होती है||
वेग वही,संवेग वही,
आवेग वही,उद्वेग वही है|
केवल परिभाषाएं बदली हैं,
परिधि नहीं पर केन्द्र वही है|
इन आँखों में जल ही जल है,उन आँखों में मोती है|
अब तो सारी ही रचनाएं कंप्यूटर पर होती है||

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Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 9, 2012 at 11:26pm

मृतिका पात्रों का सोंधापन,
स्नेहपूर्ण परसन,प्रक्षालन|
मधुमय मंगल गीतों के संग-
मिष्ट अन्न,दुर्लभ आस्वादन|
चन्दन वासित,कंचन काया सुबक,सुबक कर रोती है|..

मयंक जी हमारे धरोहर-प्रथाओं परम्पराओं की एक झांकी ..उसे जीवंत करते हुए ...गाँव के दर्शन हुए ... ..जय श्री राधे 


भ्रमर ५ 


Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on April 4, 2012 at 11:45am

लाजवाब मनोज भाई| जिस कौशल के साथ आपने आधुनिक होते समाज की विद्रूपताओं को रेखांकित किया है वह निश्चय ही सराहनीय है| बहुत ही सुन्दर गीत| बधाई|

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on April 4, 2012 at 11:20am
bhai mayank ji, saadar! kitane anokhe, sahaj, sundar evam navin bimb pakade hain aapne, bahut sundar, vishesh:

दूरभाष की नीरस बातें,
मिटीं दूरियां रिश्ते,नाते,.... pahale to khat sambhal ke rachte the log saalon saal.

saadar badhaai.
Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on April 4, 2012 at 10:53am

आभार डॉसाहब, सादर वंदे

Comment by Dr Ajay Kumar Sharma on April 4, 2012 at 10:40am

सुंदर कविता .

Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on April 4, 2012 at 8:52am

आदरणीय प्रदीप सर...उत्साह बढ़ाने वाली प्रतिक्रया के लिए आपका कोटिशः अभिवादन

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 3, 2012 at 11:35pm

snehi manoj ji. sadar 

इन आँखों में जल ही जल है,उन आँखों में मोती है|
अब तो सारी ही रचनाएं कंप्यूटर पर होती है||

bahut shandar shabd, bhav rachna aur prastutikaran. bahut khoob. badhai. 

Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on April 3, 2012 at 10:52pm

इतनी जल्दी प्रकाशित भी हो गया...भाई वाह मजा आ गया

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