For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हसीना तेरे गालों पे पसीना जब भी आता है ।
सही माने में सावन का महीना तब ही आता है ।
न जाने साँस चलने को ही किसने ज़िन्दगी कह दी ।
हसीं जुल्फों की हो जब छांव जीना तब ही आता है ।
जहाँ में मय भी ,मैकश भी ,है साकी भी ,है पैमाने ।
हो मयखाना सनम की आँख पीना तब ही आता है ।
कहाँ इनकार है मापतपुरी सूरज के जलने से ।
मगर जब जलती है शमा सफीना तब ही आता है ।
गीतकार --- सतीश मापतपुरी
मोबाईल -- 9334414611

Views: 547

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by satish mapatpuri on July 29, 2010 at 12:03pm
राणा जी, नमस्कार. आपकी राय सर- आँखों पर. मैं संशोधित कर रहा हूँ. सफीना का मतलब नाव और पतंगा दोनों होता है, यह मैं उर्दू - शब्दकोष के आलोक में कह रहा हूँ, उर्दू की मुझे अच्छी जानकारी है , यह मैं यकीन के साथ नहीं कह सकता हूँ. सादर.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on July 28, 2010 at 11:21pm
सतीश जी अपनी इमानदाराना राय पेश कर रहा हूँ...पसंद आये तो रखियेगा नहीं तो उड़ा दीजियेगा
हसीना तेरे गालों पे पसीना जब भी आता है ।
सही माने में सावन का महीना तब ही आता है ।
**बहुत सुन्दर शेर(ग़ज़ल के शिल्प पर ज्यादा ध्यान न देते हुए)

न जाने साँस चलने को ही किसने ज़िन्दगी कह दी ।
हसीं जुल्फों की हो जब छांव जीना तब ही आता है ।

**दूसरा मिसरा भर्ती का लग रहा है बात कुछ जमी नहीं

जहाँ में मय भी ,मैकश भी ,है साकी भी ,है पैमाने ।
हो मयखाना सनम की आँख पीना तब ही आता है ।

**बहुत उम्दा शेर, पर वही पुरानी बात

कंहा ईन्कार है पुरी भला सूरज के जलने से ।(कहाँ इंकार है मापतपुरी सूरज के जलने से)
मगर जब जलती है शमा सफीना तब ही आता है ।

**दोनों मिसरों में एक एक मात्रा कम है______ और शमा और सफीने का सामंजस्य समझ में नहीं आया.

_______sadar_______
Comment by Admin on July 28, 2010 at 3:56pm
मापतपुरी जी प्रणाम ,
यह सही नहीं है कि OBO पर आपकी रचनाएँ पढ़ी नहीं जाती , आपकी रचनाओं का OBO परिवार ने ह्रदय से सराहा है और सराहेगा भी , हां यह अलग बात है कि बहुत से साथी टिप्पणी करने मे कंजूसी कर देते है , इसका कतई यह मतलब नहीं है कि आपकी रचना को नहीं पढ़ी गई , उदाहरण स्वरुप आप भी सभी रचनाओ पर हो सकता है कि समयाभाव मे टिप्पणी नहीं दे पाते होंगे तो क्या यह माना जाय कि आप रचनाओं को नहीं पढते ? ऐसा नहीं है, मैं समझता हूँ कि आप सभी ब्लॉग को निश्चित पढते होंगे ,
रही बात गणेश जी की टिप्पणी की तो यह उनका अपना विचार हैं, आप लोगो की तुलना मे अभी उन्हे बहुत कुछ आप सब से ही सीखना हैं अतः उसे अन्यथा लेने की आवश्यकता नहीं हैं, हम सब को आपकी रचना और अन्य रचनाओ पर आपकी अनुभवी टिप्पणी का सदैव इन्तजार रहता है और रहेगा भी ,
धन्यवाद सहित ,
आप सब का
एडमिन
Comment by satish mapatpuri on July 28, 2010 at 3:36pm
गणेश जी, बहुत -बहुत धन्यवाद जो आपने मेरी रचना आधोपांत पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया दी अन्यथा obo पर तो शायद मेरी रचना अब पढ़ी ही नहीं जाती है. मुझे आलोचना अच्छी लगती है. अतएव एक बार पुन: धन्यवाद. ग़ज़ल-गीत-कविता में ख्याल की अभिव्यक्ति की जाती है, यथार्थ की नहीं. राम-भरत- मिलाप में यह लिखा गया है कि उनके रुदन से नदी प्रवाहित हो गयी तो इसका मतलब कदापि यह नहीं की सचमुच की नदी बह गयी. अतिश्योक्ति साहित्य-सृजन का एक शिल्प है. मेरे कहने का तात्पर्य मात्र यह है कि किसी हसीन रुखसार पर पसीना देखकर सावन का तसव्वुर होता है. आपकी कसौटी पर दूसरा शे'र भी गलत है क्योंकि साँस चलना ही जीने का सबूत है.
गणेश जी, कविता,ग़ज़ल और गीत-लेखन की एक शैली होती हैं. मैं यहाँ दो उदाहरण देना चाहता हूँ- शेक्सपियर ने अपनी एक कविता में लिखा है-
both man and bird and bist . दिनकर ने रश्मिरथी में परशुराम की कुटिया का वर्णन करते हुए लिखा है कि पर्वत पर परशुराम की कुटिया थी. आगे लिखा है कि धान कट चुके हैं और उन खेतों में गिलहरियाँ फुदक रही हैं. यह कविता का सौन्दर्य है.
मेरी पहले की रचनाओं के मुकाबले आपको यह कमजोर रचना लगी, मैं आगे ध्यान रखूंगा. कृपया अन्यथा न लेंगे. सदभावना सहित.

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 27, 2010 at 9:39pm
सतीश भईया आपकी पहली लाइन ही आप की दूसरी लाइन को काट रही है , अगर पसीना आने से सावन आ जाता तब तो जून मे ही सावन आ गया रहता , बाकी सब लाइने ठीक लग रही है , अपेक्षाकृत यह रचना आपके अन्य रचनाओ से मुझे कमजोर लग रही है , प्रयास अच्छा है , अगली रचना का इन्तजार है, धन्यवाद,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे सखा, रह रह आए याद। करते थे सब काम हम, ओबीओ के बाद।। रे भैया ओबीओ के बाद। वो भी…"
3 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
15 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
16 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय,  मिथिलेश वामनकर जी एवं आदरणीय  लक्ष्मण धामी…"
18 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Wednesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Nov 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service