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पाप.....

कितना कठिन होता है
पाप को परिभाषित करना
क्या
निज स्वार्थ के लिए 
किसी के  उजाले को
गहन अन्धकार के नुकीले डैनों से
लहूलुहान कर देना
पाप है

क्या
अपने अंतर्मन की
नाद के विरुद्ध जाना
पाप है

क्या
किसी की बेबसी पर 
अट्टहास करना
पाप है

क्या
अन्याय के विरुद्ध  मौन धारण कर
नज़र नीची कर के निकल जाना
पाप है

वस्तुतः
सोच से निवारण तक 
अंतरात्मा के विरुद्ध जाना ही
पाप है शायद

सुशील सरना / 25-3-22

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on March 30, 2022 at 10:09pm
आदरणीय विजय निकोर जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार सर । सादर नमन
Comment by vijay nikore on March 30, 2022 at 3:27pm

अद्भुत  भाव  !   बधाई, आ० मित्र सुशील जी। ऐसे ही लिखते रहें।

कृपया ध्यान दे...

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