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शरद कुमार's Blog (2)

कारोबार-ए-जिंदगी के कारवां चलते रहे

निकले धूप और कभी बादल हैं पिघलते रहें

मौसमों की फितरतों में है की बदलते रहे

 

कभी पके कभी फुटे लौंदे गए रौंदे गए

मस्त होके जिंदगी के सांचे में ढलते रहे

 

शिकवा नहीं जीवन के है उतार और चढाव से

तकदीर के जानों पे हम ख़ुशी ख़ुशी पलते रहे

 

मुश्किलों तो आएँगी हज़ारों राह में मगर  

कारोबार-ए-जिंदगी के कारवां चलते रहे

 

आयें लाखों तूफां पर उम्मीदें बुझ सकें नहीं

हौसलों के साए में चराग ये जलते…

Continue

Added by शरद कुमार on October 22, 2013 at 10:14pm — 11 Comments

रख गया कोई

आँखों मे उम्मीदों के चिराग रख गया कोई

फिर जलने का असबाब रख गया कोई

 

पकड़कर मेरा चोरी से देखना उसको

राज़-ए-दिल बेनकाब रख गया कोई

 

करके वादा सफर मे साथ देने का

हौसले बेहिसाब रख गया कोई

 

झुकाकर शर्म से अपनी पलकें

मेरे सवाल का जवाब रख गया कोई

 

मेरी नींदों से महरूम आँखों मे

जिंदगी के ख्वाब रख गया कोई

 

शरद 

Added by शरद कुमार on October 16, 2012 at 3:29pm — No Comments

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