क्षणभंगुर है आजकल, शीशे सा संकल्प।
राम सरीखा कौन अब, सारे मन के अल्प।।
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जो आगन को लड़ रहे, भाई से हर शाम
कमतर देखो लग रहा, उन्हें राम का काम।।
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सूपनखा की कट गयी, लछमन हाथों नाक
बनी रही फिर भी वही, तीन पात का ढाक।।
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जनमर्यादा को करे, कौन राम सा त्याग
ढूँढा करते किन्तु सब, राम काज में दाग।।
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दण्ड लखन को मृत्यु का, सीता को वनवास
सहा न क्या-क्या राम…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 27, 2024 at 8:57am — No Comments
कितना भी दुविधा का क्षण हो
मन में केवल रामायण हो।।
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बनना जितना राम असम्भव
उससे बढ़कर भरत कठिन है।
जीवन में चहुँ ओर मंथरा
जब उकसाती हर पलछिन है।।
कलयुग के सिर दोष न मढ़ना
देख स्वयम् को निज दर्पण हो।।
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इच्छाओं के कुरुक्षेत्र में
भीष्म सरीखा जब हो घायल।
और ज्ञान के नभ मण्डल में
शंकाओं के छायें बादल।।
पर तुम विचलित कभी न होना
आस-पास कितना भी रण हो।।
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गोवर्धन नित पड़े …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 26, 2024 at 12:21pm — 4 Comments
२१२/२१२/२१२/२१२
कह रही है बहुत ये हवा आग से
तिश्नगी हर नगर की बुझा आग से।१।
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जागते लोग बाधा सियासत कहे
चैन की नींद सब को सुला आग से।२।
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ईश औषध बना बोल देते रहे
लोग चलने लगे विष बना आग से।३।
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दूर से हाथ जोड़ो कि सपनों छिपा
जब पड़े आप का वास्ता आग से।४।
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जल गये हाथ बच्चे के बूढ़ा कहे
खुश हुआ दोस्ती कर युवा आग से।५।
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भूप अंधा हुआ आग हाथों में ले
झोपड़ी को भुला खेलता आग से।६।
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इश्क…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 16, 2024 at 4:10am — No Comments
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