For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Poonam Shukla's Blog – November 2013 Archive (5)

ग़ज़ल - जादुई बात थी सजाओं में - पूनम शुक्ला

2122. 1212. 22

जाने क्या बात है हवाओं में
मीठी मिश्री घुली सदाओं में

ऐसी वैसी नहीं ये रातें हैं
चाँदनी खोजतीं खलाओं में

शबनमी रात ने कहा कुछ है
कुछ नई बात है सबाओं में

रात का है असर अभी ऐसा
जामुनी रंग है अदाओं में

रोशनी छीन ले जो वो मेरी
ऐसी ताकत नहीं ज़फाओं में

जिन्दगी आज सोचती है ये
जादुई बात थी सजाओं में

पूनम शुक्ला

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Poonam Shukla on November 13, 2013 at 10:02am — 12 Comments

ग़ज़ल - कुछ नई बात है सबाओं में - पूनम शुक्ला

2122. 1212. 22

जाने क्या बात है हवाओं में
मीठी मिश्री घुली सदाओं में

ऐसी वैसी नहीं ये रातें हैं
चाँदनी खोजतीं खलाओं में

शबनमी रात ने कहा कुछ है
कुछ नई बात है सबाओं में

रात का है असर अभी ऐसा
जामुनी रंग है अदाओं में

रोशनी छीन ले जो वो मेरी
ऐसी ताकत नहीं ज़फाओं में

जिन्दगी आज सोचती है ये
जादुई बात थी सजाओं में

पूनम शुक्ला

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Poonam Shukla on November 12, 2013 at 9:37am — 2 Comments

ग़ज़ल - हँसती फ़िजा का जवाब देखिए - पूनम शुक्ला

2212 . 2121. 212





जीवन की ऐसी किताब देखिए

काँटों में खिलता गुलाब देखिए



रोती ज़मी आसमान रो रहा

हँसता रुदन ये जनाब देखिए



सोई सबा पर न सोई ये रज़ा

जलता हुआ आफताब देखिए



जन्नत हुई तिश्नगी है इस कदर

मालिक दिलों के हुबाब देखिए



कीमत हँसी की चुकाई भी तो क्या

हँसती फिज़ा का जवाब देखिए



आँगन मेरा रोशनी से भर गया

ऐसा मेरा माहताब देखिए



दीवानगी घेरती है इस कदर

निखरा है ऐसा शबाब… Continue

Added by Poonam Shukla on November 11, 2013 at 2:00pm — 16 Comments

ग़ज़ल - समुन्दर को डगर कर दूँ - पूनम शुक्ला

1222. 1222

सबा हाजिर अगर कर दूँ
कहानी इक अमर कर दूँ

अँधेरा घेरता फिर से
सितारों को खबर कर दूँ

हवा थोड़ी तुफानी है
इसे मैं बेअसर कर दूँ

कलम की रोशनाई से
फलक रंगीं अगर कर दूँ

ख़ला की हिकमती कैसी
अगर थोड़ी सहर कर दूँ

जरा सा वक्त तुम दे दो
जहन्नुम को न घर कर दूँ

चलूँगी राह जब अपनी
समुन्दर को डगर कर दूँ

हिकमती - उपाय

पूनम शुक्ला

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Poonam Shukla on November 8, 2013 at 3:20pm — 17 Comments

गज़ल - राहों में दीवारें हैं - पूनम शुक्ला

2222. 222

बजती क्यों झंकारें हैं
जब सजती तलवारें हैं

मुँह पर ताले ऐसे क्यों
अब उठती ललकारें हैं

आँखों में देखो पानी
उफ इतनी मनुहारें हैं

कब बदलेगी ये झुग्गी
हाँ बदली सरकारें हैं

काँटे ही काँटे हैं बस
राहों में दीवारें हैं

बहना इतना मुश्किल क्यों
दिखती बस मझधारें हैं ।
पूनम शुक्ला
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Poonam Shukla on November 7, 2013 at 10:30am — 12 Comments

Monthly Archives

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. भाई शिज्जू 'शकूर' जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
12 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service