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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Blog – October 2022 Archive (2)

गीत -४ (लक्ष्मण धामी "मुसाफिर")

खोल रक्खा है निमोही द्वार आ जाओ।

हैं अधर पर प्यास के अंगार आ जाओ।।

*

नित्य बदली छोड़ कर अम्बर।

बैठ  जाती आन  पलकों  पर।।

धुल न जाये फिर कहीं शृंगार आ जाओ।

खोल रक्खा है निमोही द्वार आ जाओ।।

*

शूल सी चंचल हवाएँ सब।

हो गयीं नीरस दिशाएँ सब।।

है बहुत सूना हृदय संसार आ जाओ।

खोल रक्खा है निमोही द्वार आ जाओ।।

*   

हो गयी बोझिल पलक जगते।

आस खंडित आस नित रखते।।

कौल को अब कर समन्दर पार आ जाओ।

खोल रक्खा है निमोही द्वार आ…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 26, 2022 at 6:16am — 14 Comments

गीत-3 (लक्ष्मण धामी "मुसाफिर")

गीत

*****

उजाला  कर  दिया उसने

चलें उस ओर हम-तुम भी।।

*

तमस के गाँव में रह कर

सदी  बीती  हमारी  भी।

अभी तक ढो रहे हैं बस

वही  थोपी  उधारी  भी।।

*

नहीं  प्रयास  कर  पाये

कभी इससे निकलने का।

बढ़ाया हाथ उस ने जब

लगायें जोर हम तुम भी।।

**

न जाने कौन सी ग्लानी

मिटा उत्साह देती नित।

नहीं  साहस  जुटा पाता

सँभलने का हमारा चित।।

*

सफलता  है  नहीं आयी

भला क्यों पथ हमारे ही।

तनिक मष्तिष्क से…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 19, 2022 at 3:30am — 15 Comments

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