For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Blog – September 2018 Archive (5)

जीवन में लड़ाते हैं क्यों यार गड़े मुर्दे - गजल

२२१/१२२२/२२१ /१२२२



इस द्वार  गड़े  मुर्दे  उस  द्वार गड़े मुर्दे

जीवन में लड़ाते हैं क्यों यार गड़े मुर्दे।१।



हर बार नया  मुद्दा  पैदा तो नहीं होता

देते हैं  सियासत  को  आधार गड़े मुर्दे।२।



मौसम है चुनावी क्या राहों में खड़ा यारो

लेने जो  लगे  हैं  फिर  आकार  गड़े मुर्दे।३।



भाता नहीं जिनको भी याराना जमाने में

लड़ने  को  उखाड़ेंगे  दो  चार  गड़े  मुर्दे ।४।…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 20, 2018 at 10:00am — 16 Comments

क्या मन है बीमार पड़ौसी - गजल - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२२२/२२२२



खाता क्यों है खार पड़ौसी

क्या मन है बीमार पड़ौसी।१।



इतनी जल्दी भूल गया क्यों

बचपन के हम यार पड़ौसी।२।



सच जाने पर खूब करे क्यों

बेमतलब  तकरार  पड़ौसी।३।



जो कहना है सम्मुख कह दे

मत कर  पीछे  वार पड़ौसी।४।



जबरन हम तो नहीं घुसेंगे

क्यों ढकता है द्वार पड़ौसी।५।



लड़ना भिड़ना पागलपन है

इसमें सब की हार…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 19, 2018 at 12:02am — 16 Comments

बरबादियाँ ही सब तरफ आती हैं इससे बस - गजल

221 2121 222 1212



हाकिम ही  देश लूट के जब यूँ  फरार हो

ऐसे में किस पे किस तरह तब ऐतबार हो।१।



रूहों का दर्द बढ़ के जब जिस्मों को आ लगे

बातों  से  सिर्फ  बोलिए  किसको  करार हो।२।



इनकी तो रोज ऐश  में  कटती है खूब अब

क्या फर्क इनको रोज ही जनता शिकार हो।३।



हर शख्श जब तलाश में अवसर की लूट के

हालत में देश की  भला  फिर क्या सुधार हो ।४।



मुट्ठी में सबको चाहिए पलभर में चाँद भी

मंजिल के  बास्ते  किसे  तब  इन्तजार हो…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 13, 2018 at 4:56am — 13 Comments

मालिक वतन के  भूख  से - गजल - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/ २१२१ /२२२/१२१२

हर शख्स जो भी दूर से भोंदू दिखाई दे

देखूँ करीब से  तो  वो  चालू  दिखाई दे।१।



अब तो हवा भी कत्ल का सामान हो रही

लाज़िम नहीं कि  हाथ  में चाकू दिखाई दे।२।



मालिक वतन के  भूख  से  मरते रहे यहाँ

सेवक की तस्तरी में नित काजू दिखाई दे।३।



सच तो यही कि जग में है मन से फकीर जो

सोना  भी  उसको  दोस्तो  बालू  दिखाई दे।४।…



Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 10, 2018 at 9:01pm — 6 Comments

शिक्षक दिवस के दोहे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

शिक्षक दिवस के दोहे



बनते शिष्य महान तब, शिक्षक अगर महान

शिक्षक बिन हर इक रहा, अधकचरा इन्सान।१।



जिसने जीवन  भर किया, शिक्षक  का सम्मान

जग ने उसका  है  किया, इत उत  बड़ा बखान।२।



शिक्षक थोड़ा  सा  अगर,  दे  दे जो उत्साह

भटका बालक चल पड़े, सदा सत्य की राह।३।



पथ की बाधा नित हरी, जिसने राह बुहार

दे थोड़ा सा मान कर, शिक्षक का आभार।४।…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 4, 2018 at 9:00pm — 9 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   वाह ! प्रदत्त चित्र के माध्यम से आपने बारिश के मौसम में हर एक के लिए उपयोगी छाते पर…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत कुण्डलिया छंदों की सराहना हेतु आपका हार्दिक…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, कुण्डलिया छंद पर आपका अच्छा प्रयास हुआ है किन्तु  दोहे वाले…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया छंद रचा…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आती उसकी बात, जिसे है हरदम परखा। वही गर्म कप चाय, अधूरी जिस बिन बरखा// वाह चाय के बिना तो बारिश की…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीया "
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"बारिश का भय त्याग, साथ प्रियतम के जाओ। वाहन का सुख छोड़, एक छतरी में आओ॥//..बहुत सुन्दर..हार्दिक…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"चित्र पर आपके सभी छंद बहुत मोहक और चित्रानुरूप हैॅ। हार्दिक बधाई आदरणीय सुरेश कल्याण जी।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आयोजन में आपकी उपस्थिति और आपकी प्रस्तुति का स्वागत…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आप तो बिलासपुर जा कर वापस धमतरी आएँगे ही आएँगे. लेकिन मैं आभी विस्थापन के दौर से गुजर रहा…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service