For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गिरिराज भंडारी's Blog – August 2016 Archive (9)

ग़ज़ल - हम भी कुछ पत्थर लेते हैं ( गिरिराज भंडारी )

22  22  22  22  22  22  22  22 -- बहरे मीर

छोटी मोटी बातों में वो राय शुमारी कर लेते हैं

और फैसले बड़े हुये तो ख़ुद मुख़्तारी सर लेते हैं

 

वहाँ ज़मीरों की सच्चाई हम किसको समझाने जाते

दिल पे पत्थर रख के यारों रोज़ ज़रा सा मर लेते हैं

 

चाहे चीखें, रोयें, गायें फ़र्क नहीं उनको पड़ता, पर

जैसे बच्चा कोई डराये , वालिदैन सा डर लेते हैं

 

कल का नीला आसमान अब रंग बदल कर सुर्ख़ हुआ है

पंख नोच कर सभी पुराने, चल बारूदी पर लेते…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on August 25, 2016 at 5:28pm — 18 Comments

ग़ज़ल - गुड़ मिला पानी पिला महमान को ( गिरिराज भंडारी )

गुड़ मिला पानी पिला महमान को

2122    2122    212

********************************

तब नज़र इतनी कहाँ बे ख़्वाब थी

और ऐसी भी नहीं बे आब थी 

 

नेकियाँ जाने कहाँ पर छिप गईं

इस क़दर उनकी बदी में ताब थी

 

गैर मुमकिन है अँधेरा वो करे

बिंत जो कल तक यहाँ महताब थी

 

बे यक़ीनी से ज़ुदा कुछ बात कह

ठीक है, चाहत ज़रा बेताब थी

 

डिबरियों की रोशनी, पग डंडियाँ

थीं मगर , बस्ती बड़ी शादाब थी

 शादाब-…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on August 23, 2016 at 8:30am — 24 Comments

ग़ज़ल - इक अक़ीदा चल के बुतखाना हुआ -( गिरिराज भंडारी )

2122    2122    212 -

की मुहब्बत पर न जल जाना हुआ

जल उठूँ, ऐसा न मस्ताना हुआ

 

इक अक़ीदत बढ के मस्ज़िद हो गई   *---  श्रद्धा

इक अक़ीदा चल के बुतखाना हुआ  ----    विश्वास ,

वो न आयें, तो रहीं मजबूरियाँ 

हम न पहुँचे तो ये तरसाना हुआ

बात उनकी सच बयानी हो गई

हम हक़ीक़त जब कहे , ताना हुआ

 

आपने कैसी खुशी बाँटी हुज़ूर

चेह्रा चेह्रा आज ग़मख़ाना हुआ

 

चाहते…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on August 17, 2016 at 9:30am — 14 Comments

ग़ज़ल - क्या असभ्य को सच में तुम घायल पाये ( गिरिराज भंडारी )

क्या असभ्य को सच में तुम घायल पाये

22  22  22  22  22  2  --  बहरे मीर

तुमने भी अपने हिस्से के पल पाये

मिली भाव की आँच, कभी क्या गल पाये

 

शब्दों का हर बाण चलाया तुमने पर

क्या असभ्य को सच में तुम घायल पाये

 

तेल डाल कर दिया कर जला छोड़ दिया

वो जानें, वो जल पाये ना जल पाये  

 

समय इशारा किया हमेशा खतरों का

समझ इशारा कितने यहाँ सँभल पाये ?

 

खूब कोशिशें हुईं कि हम बदलें लेकिन

वर्तमान के…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on August 14, 2016 at 7:54am — 9 Comments

ग़ज़ल - मेरा ‘मै’ ही अनजाना सा लगता है - ( गिरिराज भंडारी )

22   22   22   22   22   2    -- बहरे मीर

सब कुछ जाना पहचाना सा लगता है

मेरा ‘मै’ ही अनजाना सा लगता है

 

जिसकी अपने अन्दर से पहचान हुई

वो फिर सबको दीवाना सा लगता है

 

मन का खाली पन फैला यूँ वुसअत में

जग सारा अब वीराना सा लगता है

 

घर के हर कमरे की चाहत अलग हुई

बूढ़ा छप्पर  गम ख़ाना सा लगता है

 

दिल का हर कोना दिखलाये हैं  लेकिन

हर दिल में इक तहखाना सा लगता है

 

अपनेपन के अंदर भी अब…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on August 14, 2016 at 7:30am — 12 Comments

ग़ज़ल- कोई खुश है, आओ ताली हम भीं दे दें ( गिरिराज भंडारी )

22   22   22   22   22   22 - बहरे मीर

अर्थ निकालें, उनको लाली हम भी दे दें

जो भी मर्ज़ी आये गाली हम भी दे दें

 

किसी शहर में हुआ सुना है आज धमाका

कोई खुश है, आओ ताली हम भीं दे दें

 

दूर बहुत, आये हैं अपने आकाओं से ,

थोड़ी सी उनको रखवाली हम भी दे दें

 

थाली के बैंगन वैसे तो साथ लगे. पर  

कोई कारण, कोई थाली हम भी दे दें

 

वैसे तो तैनाती दिखती सभी बाग़ में

फर्दा की खातिर कुछ माली हम भी दे…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on August 6, 2016 at 9:22am — 10 Comments

ग़ज़ल - खंज़र वाले हाथ कभी काँपे क्या उनके ? ( गिरिराज भंडारी )

22  22  22  22  22  22   बहरे मीर

फोकट की ये बातें हमको मत गिनवाओ

नकली उख़ड़ी सांसें, हमको मत गिनवाओ

 

खंज़र वाले हाथ कभी काँपे क्या उनके ?

आज हुई प्रतिघातें, हमको मत गिनवाओ

 

वर्षों से सूरज का ख़्वाब दिखाते आये

अब तो काली रातें हमको मत गिनवाओ

 

शहर शहर को तोड़ तोड़ के गाँव करो तुम

बची खुची चौपालें हमको मत गिनवाओ

 

फुलवारी के बीच बनी थी हर पगडंडी

कोलतार की सड़कें हमको मत गिनवाओ 

 

क्षितिज…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on August 2, 2016 at 1:05pm — 12 Comments

ग़ज़ल - कैसे दुर्योधन को कोई मोहन कह ले ( गिरिराज भंडारी )

22  22  22  22  22  22 

कैसे दुर्योधन को कोई मोहन कह ले  

और सुदामा मित्र बने तो, दुश्मन कहले

 

मुझको तेरी बाहों का घेरा जन्नत है

मेरी बाहों को चाहे तू बन्धन कह ले

 

मै रातों को चीख, नींद से उठ जाता हूँ

तू समझे तो इसको मेरी तड़पन कह ले

 

अब केवल कंक्रीट दिखेंगे शहर नगर में

बन्द आँख कर तू इसको ही मधुबन कह ले

 

विष ही वमन किया हर पत्ता, हवा चली जब

तू उन बीजों को बोया, तू चंदन कह…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on August 2, 2016 at 1:03pm — 17 Comments

ग़ज़ल - आप सोये, तो जहाँ सोने लगा ( गिरिराज भंडारी )

2122   2122   212 

जानवर भी देख कर रोने लगा

न्याय अब काला हिरण होने लगा

 

आइने की तर्ज़ुमानी यूँ हुई   

आइने का अर्थ ही खोने लगा

 

हंस सोचे अब अलग किसको करूँ  

दूध जब पानी नुमा होने लगा

 

ऐ ख़ुदा ! कैसा दिया तू आसमाँ

था यक़ीं जिस पर, क़हत बोने लगा

 

बदलियों ! कुछ तो रहम दिल में रखो 

चाँद अब तो साँवला होने लगा

 

आग से बुझती कहाँ है आग , फिर

जब्र से क्यूँ ज़ब्र वो धोने लगा…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on August 1, 2016 at 9:00am — 23 Comments

Monthly Archives

2025

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
34 minutes ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
16 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service