पायलों की खनक में दबा रह गया
दर्द आँखों में तन्हाई का रह गया
वो गया या नहीं, फ़र्क़ क्या रह गया
जहन में एक बस हादसा रह गया
रोकने की बहुत कोशिशें कीं मगर
वो गया और मैं देखता रह गया
अब के बिछड़ो तो दिल तोड़ जाना सनम
फिर न कहना कि इक आसरा रह गया
रात की सिसकिया थक के सोने चली
रौशनी से मेरा राब्ता रह गया
जाम छलके हैं कैसे करूँ इब्तेदा
कुछ मज़ा कुछ नशा यार का रह गया
मौलिक एवं अप्रकाशित
Posted on June 12, 2019 at 2:00pm — 3 Comments
I need to have a word privately,Could you please get back to me on ( mrs.ericaw1@gmail.com)Thanks.
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