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आखिर कब तक लुटेगी दामिनी ---अखंड गहमरी की प्रस्‍तुति

दिल्‍ली में दामिनी कांड को एक साल पूरे हेाने वाले है। फॉंसी की सजा सुनाये भी महीनो हो चुके है,मगर आज तक वह अपराधी केवल सलाखों के पीछे है। जो एक मिशाल है भारत के अपंग कानून का,आरोपी पर आरोप साबित होने के बाद भी महीनों तेा दूर वर्षो जीते है, भारतीय संविधाान की धाराओं का सहारा लेकर  पीडिता के दिल पर, उसके परिवार के दिल पर एक बोझ बन कर रहते है। और हम केवल बहस में उलझे रहते है,ये कहॉं तक न्‍याय संगत है।गत वर्ष दि‍ल्ली  में जो हुआ वह अमानवीयता के हद से अधि‍क अमानवीय था। यात्रा के दौरान,शिक्षा के दौरान, अपने कार्य करने के दौरान यहॉं तक की घरों में रहते हुए भी हमारी महिलायें सुरक्षित नहीं है। रिश्‍तों की मर्यादा खत्‍म हो चुकी है,रिश्‍तो की गरिमा समाप्‍त हेा चुकी है, जैसे लगता हैं कि कामदेव सर्व-शक्तिमान होकर हमारे चरित्र का लोप करने पर उतारू हो गये है। हम उनके जाल में फँसते जा रहे है। स्‍त्रीयों की हालत खराब होती जा रही है, बचपन हो,जवानी हो, या फिर जीवन का अंतिम पडाव हर उम्र में उनकी स्‍वतन्‍त्रता खटाई में पड चुकी है,यहॉं तक की अवोध और मासूम बच्‍चीयॉं भी राक्षसों के हवस जाल में जली जा रही हैं यह एक समाजिक पतन नहीं हैं तो और क्‍या है।  महिला जगत यात्रा के दौरान सुरक्षित ना रहे,शिक्षा के दौरान, अपने व्‍यवसायिक कार्य  या गृह कार्य के दौरान सुरक्षित ना रहे ये हमारा और हमारे समाज का एक बहुत ही घृणात्‍मक पहलू है ।  मानवाधिकार का उलंघन है।भारत में नारीयाँ पूज्‍यनीय है इस सच्‍चाई को धक्‍का है। जिस देश में नारीयों की पूजा होती है उस देश में नारीयों का ये अपमान हमारी परम्‍परा को शमशान तक पहुँचा रहा है।
दिल्‍ली के कांड के बाद आवाम का गुस्‍सा चरम सीमा पर था ।आवाम आरोपीयों के लिये फॉंसी की सजा की मॉंग कर रहा था। देर से ही सही लम्‍बे न्‍यायिक प्रक्रिया के बाद ऐसा हुआ हुआ भी,आरोपीयों को फॉंसी की सजा सुनाई गयी,मगर वह फिर वह संविधान के धाराओं में उलझी पडी है। 16 दिसम्‍बर को दिल्‍ली में यह घटना हुई 18 दिसम्‍बर  से देश में मि‍डि‍या के माध्यम से यह घटना  फैली, इस घटना की पूरे देश में निंदा, वि‍रोध एवं वि‍रोध में प्रदर्शन हुआ।19 दिसम्‍बर तक सभी आरोपीयों की पकड़ लिये गये मगर फिर क्‍या हुआ। एक पखवारा भी नहीं बीता 4 जनवरी केा आरा बक्‍सर के बीच एसी कोच में दारजलिंग की एक लडकी के साथ इस प्रकार की घटना हुई। 5 जनवरी को सोनभद्र में सामूहि‍क दुश्‍कर्म का समाचार छपा और उसके बाद तो इस प्रकार की घटना की बाढ़ सी आ गयी।बम्‍बई में महिल पत्रकार के घटना हुई यही नहीं अब आये दिन समाचार पत्र इस प्रकार की घटनाओं से भरे जाने लगे, घटनाये पहले से अधिक होने लगी। आरोपीयों को फॉंसी की सजा सुनाये जाने के बाद भी महिलाओं के साथ होने वाली यह घणात्‍मक कार्य नहीं रूकी। महिलायें  एवं मासूम बच्‍चीयॉं हवस के दरिन्‍दों के हवस का शिकार बनने लगी। जिससे एक बार फिर मेरे इस सोच को कि क्‍या फॉंसी की सजा से यह सब रूक जायेगा अगर ऐसा है तो आज तक महॉंत्‍मा गॉंधी, इंदिरा गॉंधी के हत्‍यारों को फॉंसी की सजा होने के बाद क्‍या देश में हत्‍याये रूक गयी, अजमल कसाब और अफजल गुरू को फॉंसी देने के बाद  क्‍या देश में आतंकवाद रूक गया को हवा दे दिया, मैं सोचने लगा कि आखिर कैसे रूकेगी ये घटनाये, आखिर कब होगीं हमारे समाज में औरते सुरक्षित।          
   क्‍या केवल फॉंसी की सजा सुनाये जाने, औरतों के सुरक्षा काननू में तबदीली कर घूरने पर प्रतिवंन्‍ध लगाने जैसे माजाकिया काननू से यह रूक जायेगा, लोगों के विरोध प्रर्दशन से रूक जायेगा या फिर सरकार ही नहीं धर्म और समाज के ठीकेदारों के बयानवाजी से ये सब रूक जायेगा, हमें तो आज के हालत देख कर ऐसा नहीं लगाता कि इन सब से कुछ भी होने वाला है।  आज कुछ ऐसा होना चाहिये जो पीडि‍ता के साथ हुआ आगें कि‍सी के साथ नही हो, सजा ऐसी हो जि‍सका नाम सुन कर लोगों के रोगटे खडें हो जाये, कोई इस प्रकार की हरकत करने से पहले हजार बार सोचने पर मजबुर हो जाये। ऐसी धिनौनी हरकत करने वालो के परि‍वार को भी पता चले कि  कुल का दीपक कुल की रौशनी कैसी बुझाया। कुल के प्रकाश को कैसे रौदा।कुल खानदान का नाम कैसे रौशन कि‍या । इसलि‍ये मेरा मानना है कि प्रकार के दुश्‍कर्म करने वालो  के परि‍वारो का भी समाजि‍क बहिष्‍कार हो और देाषी इसी धरती पर रहते हुए ति‍ल ति‍ल कर मरे,मौत की भीख मॉंगे मगर उन पर मौत भी रहम ना खाये। मौत का इन्‍तजार में जीते रहे वह।उनके परिवार पर शादी- विवाह, समाजिक बोल चाल  तक पर प्रतिबंन्‍ध हेा, यहॉं तक की संविधान में दिये गये मौलिक अधिकारों से भी उनको और उनके परिवार को भी वंचित किया जाये। तब शायद  लोगो को डर होगा,और तब लगेगा अंकुश और आयेगी समाजि‍क चेतना केवल फॉंसी की सजा से क्‍या मिलता है पीडिता को जिसका नुकसान सबसे अधिक होता है, क्‍या लौट आती है उनकी इज्‍जत क्‍या जीत पाती है वह दुबारा सामान्‍य जीवन नहीं ऐसा नहीं हो पाता आज भी हमारा समाज उस पीडिता को केवल हेय नजर से देखता है, घटना से पहले की इज्‍जत दुबारा उसे प्राप्‍त नहीं हो पाती उसे वह न्‍याय नहीं मिल पाता है,जिसकी वह हकदार हेाती है। इस लिये यह पूरी न्‍यायकि प्रक्रिया ऐसी हेा जिसमें दोषीयों केा सजा मिले एवं उस पीडिता के साथ पूरा का पूरा न्‍याय हो जिसकी वह हकदार है, वह समाज मे सर उठा कर चल सके साथ ही हर बेटी बहन इस समाज में सरे राह चल सके उसे यह यकीन हो कि आज उसके साथ चल रहे है आप-हम और पूरा मानव समाज ।
मौलिक एंव अप्रकाशित अखंड गहमरी

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