आदरणीय प्रमोद श्रीवास्तवजी, आपका सादर स्वागत है.
बन पड़े तो पिछले आयोजनों को भी देख जाइये. आअको रचनाओं के साथ-साथ कई सार्थक चर्चाओं को पढ़ने का अवसर मिलेगा. और, सम्यक जानकारी भी मिलेगी.
सादर
आदरणीय सौरभ भाई , कुछ दिनों से ओबी ओ साइत और नेट दोनो से परेशान रहा , इसलिये आयोजन मे सक्रिय सहयोग नही दे पाया । मंच से इस लिये माफी चाहता हूँ । मेरी रचना की सराहना के लिये सभी पाठक मित्रों का हार्दिक आभार मानता हूँ
चित्र से काव्य तक की सफलता के लिये आपको एवँ मंच के सभी प्रतिभागियों को हार्दिक बधाइयाँ
आदरनीय , देखिये भला शुतुर्गुर्बा अब तो नही है ? अगर अब सही हो तो कृपया अंतिम दोहे को इस दोहे से प्रतिस्थापित करने की कृपा करें ।
पहले पूछें राष्ट्र से, दोषी इसका कौन
फिर समझें दोषी उसे, जो अब साधे मौन
जय हो ! आप और शुतुर्ग़ुर्बा ? कभी नहीं ! वो तो ऊँटवा अपनी आँख बन्द किया होगा और बिलरिया ऊछल-कूद मचा गयी थी ...
हा हा हा... .:-))
आदरणीय लगातार दौरे में होने के कारण और लम्बी-लम्बी मीटिंग के कारंण मैं भी मंच से दूर-दूर ही रह पा रहा हूँ. यह आपको पता ही है.
अभी रास्ते में ही हूँ और नेट की उपलब्धता के कारण सफ़र में समय का सदुपयोग कर रहा हूँ.
सादर
इस सम्यक प्रयास के लिए हार्दिक धन्यवाद व शुभकामनाएँ.
यथा निवेदित तथा संशोधित
आदरणीय पवन मिश्र जी, आत्ममुग्ध होना या तदनुरूप सोचना इस मंच पर स्वयं के प्रति गाली की तरह लिया जाता है. क्यों कि इस मंच पर सदा से रचनाओं के परिप्रेक्ष्य में ही किसी रचनाकार को देखा जाता है.
आपकी इस प्रस्तुति में प्रथम दृष्ट्या कुछ ऐसा नहीं दिखा, जिसे इंगित किया जाता. कमसेकम मुझे तो नहीं दिखा. इसे कोई मेरी कमसमझी भी कह सकता है. मुझे आपत्ति नहीं होगी, आदरणीय.. :-))
शुभेच्छाएँ
सुधीजनो ! मुझे नहीं मालूम, संकलित और संशोधित रचनाएँ कैसे डिलीट हो गयीं ! हतप्रभ हूँ. आज आखिरी बार आदरणीया अलका जी की रचना संशोधित हुई थी. अभी उन्होंने ही टिप्पणी कर यह सूचना दी है. कहीं यह किसी बड़ी तकनीकी समस्या की आहट है तो नहीं ?
आदरणीय सुरेश कल्याण जी, इस अंक के संकलन की रचनाएँ कैसे ग़ायब हुई हैं, यह मेरे लिए भी आश्चर्य है. संकलित रचनाओं की कॉपी न होने से इनका दुबारा संकलन कष्टसाध्य ही है. अंक -66 की प्रस्तुत रचनाओं का संकलन आ गया है आप उक्त रचनाओं पर ध्यान केन्द्रित करें.
सादर
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