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मैथिली साहित्य Discussions (35)

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मिथिला राज्य की मांग--- कितना जायज, कितना नाजायज?

छोटे-छोटे राज्यों के निर्माण की मांग तो वर्षों से चली आ रही है, किन्तु झारखंड. उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ के गठन के बाद इस तरह की मांग और बढ़ गयी…

Started by Manoj Kumar Jha

13 Aug 20, 2010
Reply by pankaj jha

मैथिल कोकिल विद्यापति

मैथिल कोकिल विद्यापति केर जन्म लगभग १३८० ईस्वी में भेल रहैन्ह. १३८४ सं १३८६ ईस्वी के बीच अल्पायु में ही ओ पद लिखि गयासुद्दीन आजम शाह आ नसर…

Started by Manoj Kumar Jha

3 Aug 11, 2010
Reply by Manoj Kumar Jha

मुख्य प्रबंधक

महाकवि विद्यापति की रचनायें ...

(1)जय-जय भै‍रवि असुर भयाउनि, पशुपति भामिनी माया | सहज सुमति कर दियउ गोसाउनि, अनुगति गति तुअ पाया || वासर रैनि सबासन शोभित, चरण चन्‍द्रमण…

Started by Er. Ganesh Jee "Bagi"

1 Aug 8, 2010
Reply by Manoj Kumar Jha

हर बहय से खर खाय, बकरी खाय अंचार

देखू बदलि गेल दुनिया के, सभटा बात विचार, हर बहै से खर खाई अछि, बकरी खाय अंचार, भोजन नहिं ओकरा भेंटाई अछि जे अनाज उपजाबै जे कुर्सी पर डटल र…

Started by Manoj Kumar Jha

3 Jul 27, 2010
Reply by Saurabh Pandey

जहिया सं परदेशी भेलहुँ,

बिसरि गेलहुं गामक ओ धरती, बिसरल कलमी आमक गाछी, सींग टुटलकी गैया बिसरल दूध पिबैत ओ करकी बाछी, बिसरल नाच, विदेशिया नाटक, आसिन मासक दुर्गा मेल…

Started by Manoj Kumar Jha

5 Jul 21, 2010
Reply by Manoj Kumar Jha

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Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"२२१ १२२१ १२२१ १२२ ये तर्क-ए-तअल्लुक भी मिटाने के लिये आ मैं ग़ैर हूँ तो ग़ैर जताने के लिये…"
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गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )

चली आयी है मिलने फिर किधर से१२२२   १२२२    १२२जो बच्चे दूर हैं माँ –बाप – घर सेवो पत्ते गिर चुके…See More
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"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर नज़र ए करम का देखिये आदरणीय तीसरे शे'र में सुधार…"
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कुंडलिया. . . . .

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Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
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Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर इस्लाह करने के लिए सहृदय धन्यवाद और बेहतर हो गये अशआर…"
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"आ. आज़ी भाई मतले के सानी को लयभंग नहीं कहूँगा लेकिन थोडा अटकाव है . चार पहर कट जाएँ अगर जो…"
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Aazi Tamaam commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"बेहद ख़ूबसुरत ग़ज़ल हुई है आदरणीय निलेश सर मतला बेहद पसंद आया बधाई स्वीकारें"
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"आ. आज़ी तमाम भाई,अच्छी ग़ज़ल हुई है .. कुछ शेर और बेहतर हो सकते हैं.जैसे  इल्म का अब हाल ये है…"
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